नई दिल्ली। कांग्रेस की वरिष्ठ नेता और पूर्व यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गांधी के खिलाफ दायर याचिका पर राउज एवेन्यू कोर्ट में सुनवाई हुई। याचिका में दावा किया गया कि सोनिया गांधी का नाम भारतीय नागरिक बनने से तीन साल पहले मतदाता सूची में जोड़ा गया था।
राउज एवेन्यू कोर्ट के अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (एसीजेएम) वैभव चौरसिया ने शिकायतकर्ता विकास त्रिपाठी के वरिष्ठ अधिवक्ता पवन नारंग की दलीलें सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।
विकास त्रिपाठी की ओर से पवन नारंग ने तर्क दिया कि मुख्य मुद्दा यह है कि जनवरी 1980 में सोनिया गांधी का नाम नई दिल्ली निर्वाचन क्षेत्र की मतदाता सूची में शामिल किया गया, जबकि वह तब भारतीय नागरिक नहीं थीं।
उन्होंने कहा कि पहले नागरिकता की प्रक्रिया पूरी करनी होती है, तभी कोई किसी क्षेत्र का निवासी बन सकता है। नारंग ने बताया कि 1980 में निवास का प्रमाण शायद राशन कार्ड और पासपोर्ट के रूप में था।
उन्होंने सवाल उठाया कि अगर वह नागरिक थीं, तो 1982 में उनका नाम मतदाता सूची से क्यों हटाया गया? उस समय निर्वाचन आयोग ने दो नाम हटाए थे, संजय गांधी का, जिनकी विमान दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी और सोनिया गांधी का।
नारंग ने कहा कि आयोग को कुछ अनियमितता जरूर नजर आई होगी, जिसके कारण उनका नाम हटाया गया। उन्होंने बताया कि 4 सितंबर को सोनिया गांधी का नाम 1980 में नई दिल्ली की मतदाता सूची में था, जिसे 1982 में हटाया गया और 1983 में भारतीय नागरिकता मिलने के बाद फिर से जोड़ा गया।
यह याचिका भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) की धारा 175 (4) (मजिस्ट्रेट को जांच का आदेश देने की शक्ति) के तहत दायर की गई थी, जिसमें पुलिस को इस आरोप की जांच करने का निर्देश देने की मांग की गई कि सोनिया गांधी 1983 में भारतीय नागरिक बनीं, लेकिन उनका नाम 1980 की मतदाता सूची में शामिल था।
याचिका में जालसाजी और सार्वजनिक प्राधिकरण के साथ ‘धोखाधड़ी’ का आरोप लगाया गया। नारंग ने अनुरोध किया कि पुलिस को उचित धाराओं के तहत प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश दिया जाए।

