सुप्रीम कोर्ट बोला, पति-पत्नी की चुपके से कॉल रिकॉर्डिंग को मान सकते हैं सबूत

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नई दिल्ली। पति-पत्नी से जुड़े एक केस में सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसला सुनाया है। शीर्ष न्यायालय का कहना है कि विवाह से जुड़ी कार्यवाही में चुपके से की गई फोन पर बातचीत की रिकॉर्डिंग को सबूत के तौर पर स्वीकार किया जाएगा।

खास बात है कि इसके साथ ही अदालत ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के आदेश को भी रद्द कर दिया, जिसमें कहा गया था कि बगैर सहमति के कॉल रिकॉर्ड करना निजता का उल्लंघन है।

जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की बेंच सुनवाई कर रही थी। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, उन्होंने कहा, ‘कुछ दलीलें दी गई थीं कि ऐसी सबूतों को स्वीकार करना से घरेलू सद्भावना और विवाह संबंध प्रभावित होंगे और यह पति पत्नी के बीच जासूसी को बढ़ावा देगा। ऐसे में एविडेंस एक्ट की धारा 122 के मूल उद्देश्य का उल्लंघन है।’

बेंच ने कहा, ‘हमें नहीं लगता कि ऐसा तर्क मान्य है। अगर शादी में यह नौबत आ गई है कि पति या पत्नी एक दूसरे की जासूसी कर रहे हैं, तो यह खुद ही टूटे हुए रिश्ते का लक्षण है और दिखाता है कि दोनों के बीच भरोसे की कमी है।’

हाईकोर्ट ने क्या कहा था
दरअसल, पहले यह मामला बठिंडा के एक फैमिली कोर्ट में गया था, जहां पति को ऐसी सीडी पर निर्भर रहने की अनुमति दी गई है जिसमें पत्नी के साथ हुई बातचीत की रिकॉर्डिंग थीं। बाद में पत्नी ने इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी। महिला का कहना था कि ये रिकॉर्डिंग बगैर उसकी सहमति के की गई हैं और इससे उसके निजता के अधिकार का उल्लंघन होता है।

उच्च न्यायालय ने महिला की याचिका को स्वीकार किया और फैमिली कोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया। साथ ही हाईकोर्ट ने कहा था कि ऐसी रिकॉर्डिंग को स्वीकार करना उचित नहीं है। बाद में पति की तरफ से हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। वकील ने कहा कि निजता के अधिकार को अन्य अधिकार और मूल्यों के साथ संतुलित किया जाना चाहिए।