कोटा में सर्प संरक्षण के महाकुंभ का आयोजन, विशेषज्ञों ने दी चौकाने वाली जानकारी
कोटा। हाड़ौती की धरती वन्यजीव संरक्षण की एक नई इबारत लिख रही है। वन विभाग (वन्यजीव डिवीजन कोटा), पगमार्क फाउंडेशन, शेर संस्था और प्रो. विनोद महोबिया सर्प एवं संरक्षण संस्था के संयुक्त तत्वावधान में स्नेक पार्क, कोटा में आयोजित तीन दिवसीय “नेशनल वर्कशॉप ऑन स्नेक इकोलॉजी एंड कंजर्वेशन” का रोमांच दूसरे दिन अपने चरम पर पहुँच गया।
जहाँ पहले दिन (शुक्रवार) को कार्यशाला का उद्घाटन वैज्ञानिक सत्रों के साथ हुआ, वहीं शनिवार दूसरे दिन देश भर के 7 राज्यों से आए प्रतिभागियों को भैंसरोड़गढ़ वन्यजीव अभयारण्य के घने जंगलों और चंबल नदी के तट पर ले जाया गया, जहाँ कक्षा की पढ़ाई को जंगल में साकार होते देखा गया।
भैंसरोड़गढ़ में ‘वाइल्डलाइफ एनकाउंटर’
आज के फील्ड विजिट के दौरान प्रतिभागियों के लिए वह क्षण यादगार बन गया जब चंबल के प्राकृतिक आवास में मगरमच्छ और दुर्लभ ऊदबिलाव की बेहतरीन साइटिंग हुई। विशेषज्ञों ने प्रतिभागियों को समझाया कि क्रोकोडाइल और ओटर्स एक स्वस्थ जलीय पारिस्थितिकी तंत्र के सूचक हैं। जहाँ ये प्रजातियां सुरक्षित हैं, वहाँ जलीय साँपों (जैसे कीलबैक प्रजाति) और अन्य रेप्टाइल्स का आवास भी सुरक्षित रहता है।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ:
फील्ड विजिट के दौरान वन्यजीव विशेषज्ञ पगमार्क फाउंडेशन के अध्यक्ष देवव्रत हाड़ा ने चंबल घाटी की भौगोलिक स्थिति समझाते हुए कहा, भैंसरोड़गढ़ की चट्टानी संरचनाएं और जलीय स्रोत सर्पों के लिए आदर्श ‘माइक्रो-हैबिटेट’ हैं। मगरमच्छों और ओटर्स की उपस्थिति बताती है कि यहाँ की खाद्य श्रृंखला मजबूत है। एक रेस्क्यूअर को केवल साँप पकड़ना नहीं, बल्कि यह समझना भी आना चाहिए कि किस प्रजाति को किस आवास में रिलीज करना सुरक्षित है।
वहीं, शेर संस्था के डॉ. कृष्णेन्द्र सिंह नामा ने कहा, किताबों में पढ़ना और जंगल में उसे प्रत्यक्ष देखना—इन दोनों में जमीन-आसमान का अंतर है। आज प्रतिभागियों ने देखा कि कैसे ओटर्स और क्रोकोडाइल अपने क्षेत्र को मार्क करते हैं और सर्प इन बड़े शिकारियों के बीच अपना अस्तित्व कैसे बचाते हैं।”ल
प्रशासन और विज्ञान का संगम
डॉ विनीत महोबिया ने बताया शुक्रवार को कार्यशाला का भव्य उद्घाटन केडीए आयुक्त श्रीमती ममता तिवारी और सीसीएफ श्री सुगनाराम जाट ने दीप प्रज्वलित कर किया था। उद्घाटन सत्र में डीएफओ श्री अनुराग भटनागर ने अभेड़ा बायोलॉजिकल पार्क में एक विशेष तकनीकी सत्र लिया था। उन्होंने प्रतिभागियों को ‘वाइल्ड’ (जंगली) और ‘कैप्टिव’ (बाड़े में) जानवरों के प्रबंधन के अंतर को समझाया और सर्प प्रजातियों की पहचान पर व्यावहारिक प्रशिक्षण दिया।
कार्यशाला के दौरान विशेषज्ञों ने एक गंभीर चिंता भी साझा की। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, दुनिया भर में सर्पदंश से होने वाली मौतों में से लगभग 50% अकेले भारत में होती हैं। प्रतिवर्ष लगभग 58,000 से 64,000 भारतीय सांप के काटने से जान गंवाते हैं, जिसका मुख्य कारण जागरूकता की कमी और अंधविश्वास है।
विशेषज्ञों ने बताया कि भारत में 300 से अधिक सांपों की प्रजातियां हैं, लेकिन मात्र 15-20% ही विषैली हैं। मुख्य रूप से ‘बिग फोर’ (कोबरा, करैत, रसेल वाइपर, और सॉ-स्केल्ड वाइपर) ही मौतों के लिए जिम्मेदार हैं, लेकिन अज्ञानतावश लोग हर सांप को मार देते हैं।
यह पहल उम्मीद की एक किरण है। इस कार्यशाला का उद्देश्य रेस्क्यूअर्स को केवल साँप पकड़ने वाला नहीं, बल्कि ‘शिक्षक’ बनाना है। विशेषज्ञों का स्पष्ट संदेश है— सांप किसानों के मित्र हैं। उन्हें मारना नहीं, बल्कि उनके साथ ‘सह-अस्तित्व’ सीखना ही हमारा लक्ष्य होना चाहिए।

