इंटेक का जवाहर बाई तालाब पर श्रमदान, प्राकृतिक धरोहर को बचाने के लिए बढ़ाए हाथ
कोटा। इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चर हेरिटेज इंटेक की ओर से नांता स्थित जौहरबाई तालाब को बचाने, जीर्णोद्धार कराने के लिए विभिन्न सरकारी स्तरों पर प्रयास किए। जब सरकार की ओर से विशेष प्रयास सामने नहीं आए तो अदभुद प्राकृतिक विरासत को बचाने के लिए इंटेक ने खुद ही आगे आकर हाथ बढ़ाए।
इंटेक की ओर से तालाब को पुनर्जीवन देने के लिए श्रमदान किया गया। इंटेक के को- कन्वीनर बहादुर सिंह हाड़ा, तथा प्रोजेक्ट हेड अनिल शर्मा की अगुवाई में शुरू किए गए श्रमदान कार्यक्रम में लोग जुड़ते चले गए। इस दौरान वन विभाग एवं स्थानीय युवाओं के सहयोग से इस समृद्ध धरोहर को पुनर्जीवित करने की दिशा में एक व्यापक पहल की गई।
इंटेक कोटा चैप्टर के कन्वीनर निखिलेश सेठी ने बताया कि थर्मल द्वारा नष्ट की गई इस प्राकृतिक और ऐतिहासिक संपदा की पुनर्बहाली को क्रमशः तीन खण्डों में संपन्न करने के प्रयास चल रहे हैं। प्रथम खण्ड में, जल निकासी के लिए प्रयुक्त होने वाली उन मोहरियों को बंद करना था।
जो रियासत काल में सिंचाई के लिए प्रयुक्त होती थी। ये मोहरियां वर्तमान में तालाब के जलस्तर को बनाए रखने में सबसे बड़ी बाधा थी। एएच ज़ैदी और बृजेश विजयवर्गीय ने बताया कि श्रमदान से इन्हीं मोहरियों को बंद किया गया है।
लाइफ़ मेंबर गौरव सेन झाला ने बताया कि दूसरे चरण में, तालाब के प्राचीन तटबंध के सुंदर स्वरूप को बनाए रखते हुए इसकी क्षतिग्रस्त प्राचीर की सरकारी स्तर पर मरम्मत करनी होगी। कन्वीनर निखिलेश सेठी के अनुसार तीसरे चरण में तालाब के जलग्रहण क्षेत्र में बनाए गए डाईवर्जन चैनल पर एक एनीकट का निर्माण कराने के लिये प्रशासनिक अधिकारियों को बताया जाएगा।
जोहराबाई तालाब को पिछले लेकर इंटेक की मेहनत से वन विभाग ने इसकी कुछ सुध लेनी शुरू की है। अब इसे वेटलैंड घोषित कर दिया गया है। विभाग ने अपने कार्यक्रमों में इसे शामिल कर लिया है। शीघ्र ही, विभाग की ओर से इंटेक की निगरानी में रियासतकालीन तालाब की पाल की भी मरम्मत कराई जाएगी।
देश विदेश के पक्षी डालते हैं डेरा
कोटा चैप्टर के कन्वीनर निखिलेश सेठी ने बताया कि जौहरबाई का तालाब कोटा शहर के निकट अद्भुत प्राकृतिक विरासत है। जो वर्षा जल संरक्षण का अद्भुद मॉडल है। जहां देश विदेश के पक्षी डेरा डालते हैं। इसे शासन एवं समाज के संयुक्त प्रयासों से बचाया जाना चाहिए। सेठी ने कहा कि पूर्व में थर्मल की राख के कारण यह तालाब भर गया था। अब रख का सदुपयोग होने से तालाब खाली हो गया है। इसमें वर्षा जल भी एकत्रित रहने लगा है। सरकार के मामूली प्रयासों से इस जल राशि को पुनर्जीवित कर कोटा का केवलादेव बनाया जा सकता है। यह तालाब नांता क्षेत्र के भूगर्भ जल का पुनर्भरण करने में भी सहयोगी हो सकता है।

