कोटा। गुरु आस्था परिवार कोटा के तत्वावधान में तथा सकल दिगंबर जैन समाज कोटा के आमंत्रण पर, तपोभूमि प्रणेता, पर्यावरण संरक्षक एवं सुविख्यात जैनाचार्य आचार्य प्रज्ञासागर मुनिराज का 37वां चातुर्मास महावीर नगर प्रथम स्थित प्रज्ञालोक में श्रद्धा, भक्ति और आध्यात्मिक गरिमा के साथ संपन्न हो रहा है।
आचार्य कुंदकुंद स्वामी की देशना को आधार बनाकर प्रज्ञासागर महाराज ने कहा कि “पापी से नहीं, पाप से घृणा करें। दोषी व्यक्ति नहीं, दोष निंदनीय होता है।” उन्होंने समझाया कि नमोकार मंत्र के प्रभाव से अंजन चोर ने आत्मशुद्धि प्राप्त कर सिद्धत्व को प्राप्त किया। ऐसे उदाहरण प्रेरणा हैं कि धर्म का मार्ग केवल शब्दों से नहीं, दृष्टिकोण से भी तय होता है।
एआई और सोशल मीडिया सम्यक दृष्टिकोण के बिना घातक
वर्तमान युग की चुनौतियों पर चर्चा करते हुए गुरुदेव ने कहा कि आज के कलियुग में एआई (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) और सोशल मीडिया जैसी तकनीकें कई बार चरित्र हनन का कारण बन रही हैं। स्मार्टफोन के माध्यम से बिना सोच-विचार के चीजें वायरल हो जाती हैं, जो समाज में अराजकता फैला सकती हैं।
उन्होने कहा, “व्हाट्सएप पर एक बार कोई मैसेज भेजा और वह वायरल हो गया, तो उसे सुधारा नहीं जा सकता। इसलिए जरूरी है कि हम विवेक से काम लें। सम्यक दृष्टि ही हमें सही व गलत का भेद करना सिखा सकती है।”
मोबाइल रिश्तों में संकट का कारण
गुरुदेव ने पारिवारिक जीवन की समस्याओं पर प्रकाश डालते हुए कहा कि आज मोबाइल भी अनेक घरों में कलह का कारण बन रहा है। छोटी-छोटी बातें मायके तक पहुंचती हैं और बात का बतंगड़ बन जाता है। इससे रिश्तों में कटुता आती है और तलाक जैसे मामलों की संख्या भी बढ़ रही है। उन्होंने सती अंजना का उदाहरण देते हुए कहा कि उन्होंने 22 वर्षों तक पति वियोग सहा, पर पिता राजा महेन्द्र को कभी सूचना नहीं दी। यह सम्यक दृष्टि और धैर्य का प्रतीक है।
वाणी संयम: बोले कम, बोले मूल्यवान
प्रज्ञासागर महाराज ने वाणी संयम का महत्व बताते हुए कहा, “जिस प्रकार आप सोने-चांदी के गहनों को तिजोरी में ताले में रखते हैं, वैसे ही अपनी वाणी को भी नियंत्रण में रखें। बोलें तो ऐसा बोलें कि लोग सुनने के लिए तरसें, न कि उठकर चले जाएं।” उन्होंने कहा कि गुरु वचन अनमोल होते हैं और हम सबको चाहिए कि संतुलित भाषा में बोलने से हमारी वाणी भी उसी प्रकार सम्मान प्राप्त करे।

