सद्बुद्धि, पश्चाताप और सदाचार अपना कर जीव मोक्ष मार्ग की ओर अग्रसर हो सकता है

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कोटा। विज्ञान नगर स्थित दिगंबर जैन मंदिर में गणिनी आर्यिका विभाश्री माताजी एवं विनयश्री माताजी (ससंघ) का 13 पिच्छियों सहित चातुर्मास प्रभावपूर्वक चल रहा है। शनिवार को आयोजित विशेष धर्मसभा में माता विभाश्री ने बताया कि मरीजकुमार नामक आत्मा, जो आगे चलकर भगवान महावीर बनी।

एक जन्म में नरक भोगकर शेर के रूप में पृथ्वी पर आई। एक दिन वह शेर एक हिरण को मार रहा था, तभी आकाशमार्ग से दो मुनि निकले और अहिंसा की वाणी सुनाई। यह वाणी शेर के हृदय में उतर गई। उसकी आँखों में पश्चाताप के आँसू आ गए। उसने हिंसा त्याग दी, पाँच अणुव्रतों का पालन किया और शांतिपूर्वक देह का त्याग कर अगली जन्म में स्वर्ग में उत्पन्न हुआ।

माताजी ने बताया कि यही आत्मा देव, चक्रवर्ती एवं तपस्वी रूपों में जन्म लेते हुए अंततः तीर्थंकर प्रकृति के बंध में गई और दसवें भव में भगवान महावीर के रूप में इस संसार में अवतरित हुई। उन्होने कहा कि कोई भी जीव चाहे वह कितना भी हिंसक क्यों न हो यदि सद्बुद्धि, पश्चाताप और सदाचार को अपनाए, तो वह मोक्ष मार्ग की ओर अग्रसर हो सकता है।

माता श्री ने तत्वार्थ सूत्र की कक्षा में नरकगामी जीवों की स्थिति, कष्टों एवं उनके आध्यात्मिक परिणामों का विश्लेषण करते हुए एक हृदयस्पर्शी कथा सुनाई। माताश्री ने सभी को प्रतिदिन भक्तामर स्त्रोत करने की सलाह देते हुए उसक नियम व फायदे बताये।