कोटा। विज्ञान नगर स्थित दिगंबर जैन मंदिर में बुधवार को प्रवचन के दौरान पूज्य गणिनी प्रमुख आर्यिका विभाश्री माताजी ने कहा कि संसार में मनुष्य अनेक प्रकार के मोहजाल में उलझा हुआ है। मन की चंचलता और विषय-वासनाएं ही उसके दुख का मूल कारण हैं। जैसे अग्नि में पड़ने पर सोना तपकर शुद्ध होता है, वैसे ही आत्मा भी तप और त्याग से ही निर्मल बनती है।
माताजी ने कहा कि संसार अस्थायी है, इसलिए व्यक्ति को अपने जीवन का लक्ष्य आत्मकल्याण बनाना चाहिए। जो साधना और संयम के मार्ग पर चलता है, वही सच्चे अर्थों में सुख और मुक्ति प्राप्त करता है। उन्होंने कहा, “जो साधु आत्मकल्याण की दिशा में अग्रसर होते हैं, वे संसार से तिरस्कार नहीं, बल्कि मुक्ति का मार्ग प्राप्त करते हैं।”
आर्यिका विभाश्री माताजी ने कहा कि दीपावली केवल दीपों का त्यौहार नहीं, बल्कि आत्मप्रकाश का प्रतीक पर्व है। कार्तिक कृष्ण अमावस्या का दिन भगवान महावीर के निर्वाण दिवस के रूप में मनाया जाता है, जो आत्मनिर्माण और आत्मविकास का सन्देश देता है।
उन्होंने कहा कि व्यक्ति को इस दिन नकारात्मकता, क्रोध, लोभ और अहंकार जैसे अंधकार को दूर कर आत्मा का आलोक जगाना चाहिए। 48 ऋद्धि मंत्रों का जप करने से घर की नकारात्मक शक्तियाँ समाप्त होती हैं और सुख-शांति, समृद्धि तथा सौभाग्य की वृद्धि होती है।

