कोटा। विज्ञान नगर स्थित दिगंबर जैन मंदिर में गुरुवार को अपने प्रवचन में गणिनी प्रमुख आर्यिका विभाश्री माताजी ने प्रवचन में कहा कि यह जीवन संसार में बंधन कराने वाला नहीं, बल्कि मुक्ति का द्वार खोलने वाला है।
संयम ही वह साधन है जो आत्मा को उसके वास्तविक स्वरूप में जागृत करता है। जब तक हम विषय-भोग और आसक्ति में डूबे रहते हैं। तब तक आत्मा बंधन में रहती है। संयम के द्वारा आत्मा अपनी शुद्धि को प्राप्त करती है और मोक्ष मार्ग की ओर अग्रसर होती है।
उन्होंने कहा कि संसार के क्षणिक सुख मनुष्य को स्थायी शांति नहीं दे सकते। वैराग्य ही आत्मा को सच्चे और चिरस्थायी आनंद की ओर ले जाता है। त्याग और तपस्या से आत्मा का परिष्कार होता है तथा साधक अपने जीवन का वास्तविक लक्ष्य प्राप्त करता है।
माताजी ने अनुकम्पा भावना पर बल देते हुए कहा कि साधक को अपनी दृष्टि व्यापक रखनी चाहिए और समस्त जीवों में करुणा एवं मैत्री का भाव रखना चाहिए। दूसरों की पीड़ा में अपनी पीड़ा का अनुभव करना ही सच्ची अनुकम्पा है। इस अवसर पर चातुर्मास समिति की ओर से चित्र अनावरण, दीप प्रज्वलन और शास्त्र भेंट जैसे धार्मिक कार्यक्रम संपन्न हुए।
कल्पद्रुम महा मंडल विधान का पोस्टर विमोचन
महामंत्री अनिल ठोरा व कार्याध्यक्ष मनोज जैसवाल ने बताया कि चातुर्मास उत्सव के अंतर्गत कल्पद्रुम महा मंडल विधान की तैयारियाँ जोर-शोर से चल रही हैं। यह विधान 23 सितंबर से 2 अक्टूबर तक आयोजित होगा। गणिनी प्रमुख आर्यिका विभाश्री माताजी के पावन सानिध्य में गुरुवार को विधान की पत्रिका का विमोचन किया गया।
चातुर्मास समिति पदाधिकारियों ने बताया कि अब तक विधान में बैठने के लिए लगभग 200 श्रद्धालुओं ने पंजीकरण करवाया है। संभावना है कि विधान में करीब 500 साधक धर्म आराधना का पुण्य अर्जित करेंगे।

