कोटा। विज्ञान नगर स्थित दिगंबर जैन मंदिर में बुधवार को गणिनी प्रमुख आर्यिका विभाश्री माताजी ने अपने प्रवचनों में जीवन में सादगी और संयम के महत्व पर जोर दिया। माताजी ने कहा कि प्राचीन काल से ही मनुष्य अपने घर, परिवार, धन-संपत्ति, वाहन, आभूषण, यहां तक कि अपने शरीर को भी अपना मानकर मोह में बंधा रहा है।
यही मोह और अज्ञान ही संसार के बंधन का कारण है, जिसके चलते मनुष्य माता-पिता, संतान और कुटुम्बियों को स्थायी मानकर आसक्त हो जाता है। माताजी ने समझाया कि आवश्यकता के अनुरूप ही संसाधनों का उपयोग करना चाहिए। यदि हमारा कार्य एक मकान से चल सकता है, तो तीन-चार मकान रखने की क्या आवश्यकता? यदि एक वाहन से काम चल सकता है, तो कई वाहन रखने की जरूरत नहीं।
उन्होंने श्रद्धालुओं से आह्वान किया कि जीवन में सरलता अपनाएं, मोह-माया से मुक्त रहें और केवल उतना ही संग्रह करें, जितना वास्तव में आवश्यक हो। माताजी के अनुसार, भौतिक वस्तुओं का अत्यधिक संग्रह न केवल संसाधनों की बर्बादी है, बल्कि यह आत्मिक उन्नति में भी बाधक है।

