प्रज्ञालोक मे दसलक्षण मेला आज
कोटा। आचार्य प्रज्ञासागर मुनिराज के सान्निध्य में कोटा शहर में पहली बार भव्य दशलक्षण मेला आयोजित होने जा रहा है। यह आयोजन रविवार को महावीर नगर प्रथम स्थित प्रज्ञालोक परिसर में दोपहर 2 बजे से शाम 6 बजे तक आयोजित होगा।
गुरु आस्था परिवार, कोटा के तत्वावधान और श्री सकल दिगंबर जैन समाज समिति, कोटा के सहयोग से होने वाले इस मेले का उद्देश्य बच्चों और युवा वर्ग को पारंपरिक संस्कृति से जोड़ना तथा खान–पान और मनोरंजन के माध्यम से समाज को एक सूत्र में पिरोना है।
मेले में तरह–तरह के शुद्ध एवं सात्त्विक व्यंजन, आकर्षक गेम्स और थियेटर, बच्चों के लिए मिनी सिनेमा हॉल और अन्य रचनात्मक गतिविधियां शामिल होंगी। आयोजन समिति ने बताया कि यह मेला न केवल धार्मिक प्रेरणा का स्रोत बनेगा, बल्कि पारिवारिक मेल–मिलाप और समाजिक एकता का भी प्रतीक होगा।
धर्मसभा को संबोधित करते हुए आचार्य प्रज्ञासागर ने श्रीफल को जीवन और परिवार के लिए प्रेरणास्रोत बताया। उन्होंने कहा कि श्रीफल को ‘श्रेष्ठ फल’ कहा जाता है और यह सभी शुभ धार्मिक कार्यों में अनिवार्य रूप से प्रयुक्त होता है। जैन परंपरा में श्रीफल अर्पण शुद्धता और समर्पण की भावना का प्रतीक है।
गुरुदेव ने कहा कि नारियल का प्रमुख गुण कृतज्ञता है। जिस प्रकार नारियल अपने भीतर संजोए जल के माध्यम से उपकार का प्रतिदान करता है, उसी प्रकार मनुष्य को भी जीवन में कृतज्ञ होना चाहिए। उन्होंने स्पष्ट किया कि मनुष्य को बाहर से कठोर लेकिन भीतर से नम्र रहना चाहिए। पूजा में श्रीफल अर्पित करने से संपन्नता, शांति और सुख की कामना पूरी होती है।
आचार्य श्री ने आगे कहा कि श्रीफल का आकार मानवीय अंजलि के समान होता है, जो विनम्रता, समर्पण और पूजा की संपूर्णता का प्रतीक है। जैन धर्म में श्रीफल को तोड़ा नहीं जाता, बल्कि भगवान के चरणों में साबुत और स्वच्छ अवस्था में अर्पित किया जाता है। यह त्याग, अखंडता और परिपक्वता का द्योतक है। बाद में इसे प्रसाद रूप में भक्तों में वितरित किया जाता है।

