कोटा। विज्ञान नगर स्थित दिगंबर जैन मंदिर में सोमवार को अपने प्रवचन में गणिनी आर्यिका विभाश्री माताजी ने कहा कि संसार के सभी दुःख वेदनीय कर्म के उदय से प्राप्त होते हैं। यदि जीव असाता वेदनीय कर्म का बंधन करता है तो उसे जीवन में दुःख का सामना करना पड़ता है। जबकि इनसे मुक्त होने का प्रयास करने पर जीव दुःख से छूटकर सुख की प्राप्ति कर सकता है।
उन्होंने कहा कि दुःख की घड़ी में अपने कर्मों के उदय को पहचानना चाहिए और पाँच परमेष्ठी भगवान की भक्ति से आत्मकल्याण का मार्ग अपनाना चाहिए। माताजी ने आगे आत्मा और शरीर के भेद पर प्रकाश डालते हुए कहा कि शरीर नश्वर है और उसका स्वभाव जड़ है, जबकि आत्मा का स्वभाव चेतन है। आत्मा की पहचान और उसके वास्तविक स्वरूप का चिंतन ही जीव को सही मार्ग पर अग्रसर करता है।

