विधायी संस्थाओं की गरिमा कम होना चिंता का विषय है: स्पीकर बिरला

0
13

स्पीकर ने राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों के पीठासीन अधिकारियों को संबोधित किया


नई दिल्ली। लोक सभा अध्यक्ष ओम बिरला ने आज कहा कि विधायी संस्थाओं की गरिमा कम होना सभी जनप्रतिनिधियों के लिए चिंता का विषय है। उन्होंने जोर देकर कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सदस्यों के विशेषाधिकार को सदन की गरिमा को कम करने की स्वतंत्रता नहीं समझा जाना चाहिए।

उन्होंने सुविख्यात स्वतंत्रता सेनानी, विद्वान एवं विधिवेत्ता, श्री विट्ठलभाई पटेल के केन्द्रीय विधान सभा के प्रथम भारतीय अध्यक्ष के पद पर निर्वाचन के शताब्दी वर्ष समारोह के अवसर पर आज दिल्ली विधान सभा में राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के विधायी निकायों के पीठासीन अधिकारियों के सम्मेलन में समापन भाषण देते हुए ये टिप्पणियां कीं।

श्री बिरला ने कहा कि हाल के दिनों में विधायी निकायों की गरिमा कम हुई है, जो चिंता का विषय है। उन्होंने कहा कि इस शताब्दी वर्ष पर, जनप्रतिनिधियों को विधायी निकायों में स्वतंत्र, निष्पक्ष और गरिमापूर्ण चर्चा सुनिश्चित करने की प्रतिबद्धता को समझना चाहिए।

उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि सभी राजनीतिक दलों को यह सुनिश्चित करने के लिए एक साथ आना चाहिए कि विधायी निकायों में विचारों की स्पष्ट अभिव्यक्ति जारी रहे, तथा सहमति और असहमति दोनों के माध्यम से लोकतंत्र को मजबूत किया जाए।

श्री बिरला ने विधिनिर्माताओं से उचित आचार संहिता का पालन करने का आह्वान किया और कहा कि जनता सदन के अंदर और बाहर उनके कार्यों और आचरण को देखती है। उन्होंने कहा कि जनप्रतिनिधियों को यह याद रखना चाहिए कि उनकी भाषा, विचार और अभिव्यक्ति लोकतंत्र की ताकत हैं और उन्हें सम्मानजनक और गरिमापूर्ण बनाए रखना आवश्यक है।

जनप्रतिनिधियों के आचरण के बारे में आगे अपने विचार व्यक्त करते हुए, श्री बिरला ने कहा कि विधायी निकायों के सदस्यों को अपने निकायों के नियमों, परंपराओं और परम्पराओं को बनाए रखना चाहिए।

उन्होंने कहा कि सदन को सदैव जनता की आवाज बनना चाहिए तथा सदन में बनाए गए कानून जनहित में होने चाहिए। श्री बिरला ने आगे कहा कि इस संबंध में पीठासीन अधिकारी की जिम्मेदारी बहुत महत्वपूर्ण है। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि वर्तमान और भावी पीठासीन अधिकारी सदन की कार्यवाही को स्वतंत्र, निष्पक्ष और गरिमापूर्ण बनाए रखेंगे।

दिल्ली विधान सभा भवन के ऐतिहासिक स्वरुप के बारे में बात करते हुए श्री बिरला ने कहा कि यह सदन उन नेताओं के विचारों और अभिव्यक्ति का साक्षी रहा है जिन्होंने विधायी माध्यमों से स्वतंत्रता के लिए लड़ाई लड़ी।

उन्होंने कहा कि इस शताब्दी वर्ष पर, श्री विट्ठलभाई पटेल का व्यक्तिगत और सार्वजनिक जीवन; अध्यक्ष के रूप में और स्वतंत्रता संग्राम में उनकी भूमिका हर भारतीय के लिए प्रेरणादायी है।

उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि श्री विट्ठलभाई पटेल ने अपने कार्यकाल में अध्यक्ष के अधीन एक स्वतंत्र सचिवालय की स्थापना की ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जनता तक सही ढंग से पहुंच सके। उन्होंने कहा कि यह प्रणाली आज भी प्रेरणा का स्रोत बनी हुई है।

श्री पटेल की विरासत का उल्लेख करते हुए श्री बिरला ने कहा कि उनके द्वारा स्थापित परंपराओं को बाद में भारत के संविधान में शामिल किया गया तथा राज्य सभा और लोक सभा दोनों के अपने स्वतंत्र सचिवालय हैं।

संविधान निर्माताओं ने संसद सदस्यों और विधान सभाओं के विशेषाधिकार के रूप में सदन के भीतर सरकार की आलोचना करने की पूरी स्वतंत्रता दी। तथापि उन्होंने यह भी कहा कि इस विशेषाधिकार के साथ ही उचित आचरण भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए।

श्री बिरला ने सभी राजनीतिक दलों से विधायी संस्थाओं में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के महत्व पर विचार करने का आह्वान किया और कहा कि संवाद, चर्चा, सहमति और असहमति भारतीय लोकतंत्र की ताकत बनी रहेगी। उन्होंने यह भी कहा कि सहमति और असहमति जितनी अधिक विविधतापूर्ण होगी, लोकतंत्र उतना ही मजबूत होगा।

उन्होंने कहा कि शताब्दी वर्ष के अवसर पर श्री विट्ठलभाई पटेल की विरासत न केवल राष्ट्र को प्रेरित करेगी बल्कि उसे एक नई दिशा की ओर भी ले जाएगी। उन्होंने आशा व्यक्त की कि सभी पीठासीन अधिकारी श्री पटेल के पदचिन्हों पर चलने का ईमानदारी से प्रयास करेंगे।

केंद्रीय संचार और पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्री, श्री ज्योतिरादित्य एम. सिंधिया; आवासन एवं शहरी मामले तथा विद्युत मंत्री,श्री मनोहर लाल; दिल्ली की मुख्य मंत्री, श्रीमती रेखा गुप्ता; दिल्ली विधान सभा के अध्यक्ष, श्री विजेंदर गुप्ता; विभिन्न राज्य विधान सभाओं और परिषदों के पीठासीन अधिकारी, सांसद, विधायक और अन्य गणमान्य व्यक्ति इस अवसर पर उपस्थित रहे।