कोटा। रक्षाबंधन पर्व प्रज्ञालोक में अनोखे, धार्मिक एवं भावनात्मक स्वरूप में मनाया गया। 70 मुनिराजों को सुंदर राजभवन,राजभवन के बाहर खड़े सपरिवार 700 परिजन, एक स्वर में प्रज्ञासागर मुनिराज को नवद्या भक्ति में ओत-प्रोत होकर एक स्वर में पुकारते नमोस्तु गुरूदेव,नमोस्तु गुरूदेव।
यह नजारा था पार्श्वनाथ दिगंबर जैन मंदिर (सफेद मंदिर) के बाहर 70 राज परिवारों के 700 श्रावक आचार्य प्रज्ञासागर महाराज के पंक्तिबद्ध सामूहिक पड़गाहन का। आचार्य प्रज्ञासागर महाराज ने प्रत्येक राजा के द्वार पर जाकर उनकी भक्ति देखी और चक्रवर्ती राजा हरिषेण अंग देश विनय राजश्री शाह, जवाहर नगर के यहाँ आहार ग्रहण किया। कोषाध्यक्ष अजय जैन ने बताया कि शांतितीर्थ महाराज का पड़गाहन सोमप्रभ राजा, रमेशचंद, नवीन कुमार, अनिल कुमार दौराया (रानपुर वाले) के यहाँ सम्पन्न हुआ।
अध्यक्ष लोकेश जैन सीसवाली ने बताया कि कार्यक्रम का शुभारंभ भगवान श्रेयांशनाथ के मोक्षकल्याणक अवसर पर निर्वाण लाडू चढ़ाने से हुआ। भगवान श्रेयांशनाथ का अभिषेक, शांतिधारा एवं 700 श्रीफल अर्पण के उपरांत स्वर्ण व रजत राखियां अर्पित की गईं।
धर्म की रक्षा करने वाले की धर्म रक्षा करता है
अपने प्रेरणादायी प्रवचन में आचार्य प्रज्ञासागर महाराज ने कहा रक्षाबंधन मात्र भाई-बहन के रिश्ते का प्रतीक नहीं है, यह मुनिरक्षा, धर्मरक्षा और वात्सल्य का पर्व है। धर्म रक्षिती रक्षत: अर्थात जो धर्म की रक्षा करता है, धर्म उसकी रक्षा करता है। उन्होंने धर्म की रक्षा के लिए बल और बुद्धि दोनों के प्रयोग का महत्व महाभारत के उदाहरण से स्पष्ट किया।
गुरूदेव ने मुनि विष्णुकुमार द्वारा आचार्य अकंपन और उनके 700 मुनि शिष्यों की रक्षा की करुण कथा सुनाई, जिससे उपस्थित श्रावक-श्राविकाएँ भावुक हो उठीं और धर्मरक्षा के जयकारे गूंज उठे।

