मौद्रिक नीति समिति की तीन दिवसीय बैठक शुरू, क्या मिलेगा सस्ते कर्ज का तोहफा

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नई दिल्ली। भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की छह सदस्यीय मौद्रिक नीति समिति (MPC) की तीन दिन की बैठक आज मुंबई में शुरू हो रही है। समिति का मुख्य उद्देश्य मौजूदा आर्थिक स्थिति का आकलन कर रीपो रेट और अन्य पॉलिसी दरों पर निर्णय लेना है। बैठक 1 अक्टूबर तक चलेगी और आरबीआई गवर्नर संजय मल्होत्रा बुधवार सुबह 10 बजे फैसले का ऐलान करेंगे।

बैठक में सदस्य महंगाई, आर्थिक विकास और बाजार की स्थिति पर विचार करेंगे। पिछली अगस्त की बैठक में रीपो रेट 5.5% पर स्थिर रखा गया था। इससे पहले जून में 50 बेसिस पॉइंट और फरवरी–अप्रैल में 25-25 बेसिस पॉइंट की कटौती की गई थी। मई 2022 से फरवरी 2023 के बीच रेपो रेट में कुल 250 बेसिस पॉइंट की बढ़ोतरी हुई थी।

ICRA की मुख्य अर्थशास्त्री अदिति नायर के अनुसार, जीएसटी सुधार अक्टूबर–नवंबर 2025 में महंगाई में कमी ला सकता है, लेकिन इसके बाद महंगाई फिर बढ़ सकती है। नायर का कहना है कि जीएसटी सुधार मांग बढ़ा सकता है, इसलिए अक्टूबर की बैठक में रीपो रेट स्थिर रहने की संभावना अधिक है।

विशेषज्ञों का अनुमान है कि FY26 के लिए आरबीआई महंगाई का अनुमान घटा सकती है। जीएसटी सुधार से महंगाई पर सकारात्मक असर पड़ेगा और CPI की हालिया प्रवृत्ति भी नरम दिख रही है। अगस्त 2025 में भारत की खुदरा महंगाई 2.07% रही, जबकि जुलाई में यह 1.61% थी। विशेषज्ञों के अनुसार, जीएसटी कट से इस वित्तीय वर्ष में महंगाई में लगभग 90 बेसिस पॉइंट की कमी आ सकती है।

ज्यादातर विशेषज्ञ FY26 के लिए GDP वृद्धि दर 6.5% पर बनाए रखने की उम्मीद कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि अमेरिकी टैरिफ के जोखिम के बावजूद चल रही बातचीत से समाधान निकल सकता है, इसलिए अभी वृद्धि दर में बदलाव की जरूरत नहीं है।

ब्रोकरेज हाउस Nuvama के अनुसार, आने वाली आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति (MPC) की बैठक में दर कट करना आसान नहीं होगा। कमजोर मांग, महंगे टैरिफ और सामान्य मुद्रास्फीति के बीच, सरकार के जीएसटी सुधार को समर्थन देने के लिए दर कटौती की आवश्यकता है।

हालांकि, MPC पहले यह देखना चाह सकती है कि टैक्स कट का असर मांग पर कैसा पड़ता है। इसके अलावा, उम्मीद की जा रही उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) में वृद्धि और रुपया कमजोरी भी उनके विचारों में रहेगी। पिछली बार नीति निर्माताओं ने कहा था कि आगे दर कट के लिए सीमित जगह है।

रीपो रेट कट की आवश्यकता
रिपोर्ट के अनुसार, FY26 तक मांग कमजोर रहने की संभावना है। अमेरिकी टैरिफ के कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था धीमी होगी, जिससे भारत के निर्यात और रोजगार पर असर पड़ेगा। घरेलू स्तर पर, टैक्स रेवेन्यू कम होने से सरकारी खर्च में भी कमी आएगी और घरेलू आय वृद्धि धीमी रहेगी। क्रेडिट ग्रोथ भी धीमी है। जीएसटी कट से थोड़ी राहत मिल सकती है, लेकिन व्यापक मांग कमजोर बनी रहेगी। ऐसे में, आर्थिक सुधार के लिए वित्तीय और मौद्रिक कदम साथ में जरूरी हैं।