मोह, माया, काम और क्रोध जैसे विकार आत्मा के बंधन हैं: विभाश्री माताजी

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कोटा। विज्ञान नगर स्थित दिगंबर जैन मंदिर में गणिनी आर्यिका विभाश्री माताजी ने सोमवार को चातुर्मास के अवसर पर युवावस्था को साधना का स्वर्णिम काल बताते हुए कहा कि यदि इस अवस्था में तप, ध्यान और संयम को अपनाया जाए, तो आत्मा की शुद्धि और आत्मानुभूति संभव हो पाती है।

उन्होंने स्पष्ट किया कि मोह, माया, काम और क्रोध जैसे विकार आत्मा को बंधनों में जकड़ देते हैं और मोहनीय कर्म आत्मा की सबसे बड़ी रुकावट है। जब आत्मा दुर्बल होती है, तब मोहनीय कर्म बलवान बन जाता है। जब साधक आत्मबल से संपन्न होता है, तब मोहनीय कर्म स्वयं हार मानता है।

माताजी ने बताया कि संतों की संगति में आने से चारित्र मोहनीय कर्म का क्षय होता है और जीवन में नैतिकता तथा विवेक का उदय होता है। उन्होंने दर्शन मोहनीय और चारित्र मोहनीय दोनों को आत्मा के शुद्धिकरण में सबसे बड़ी बाधा बताया।

महामंत्री अनिल ठोरा ने बताया कि तत्वार्थ सूत्र परीक्षा में 50 में से 50 अंक प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों को राजेश सोनल सेठिया एवं विनोद जैन टोरडी द्वारा पुरस्कृत किया गया। अन्य सभी परीक्षार्थियों को भी सांत्वना पुरस्कार प्रदान कर सम्मानित किया गया। इस मौके पर विभाश्री माताजी द्वारा सुगंध दशमी व्रत कथा का विस्तारपूर्वक वाचन भी किया गया, जिसमें माताजी ने व्रत का रहस्य, महत्व और उसकी आत्मिक भूमिका पर प्रकाश डाला।