कोटा। प्रज्ञासागर जी महाराज ने शुक्रवार को प्रज्ञा लोक में चल रहे चातुर्मास के अवसर पर अपने प्रवचन में कहा कि मृत्यु तो अवश्यंभावी है, परंतु मृत्यु के उपरांत व्यक्ति की गति कैसी होगी, यह उसके कर्मों पर निर्भर करती है।
उन्होंने सरल उदाहरण के माध्यम से कहा की आप जिस दिशा में जाने वाली गाड़ी में बैठेंगे, वह आपको उसी दिशा में ले जाएगी। यदि आप मुंबई की ट्रेन में बैठे हैं, तो वह आपको दिल्ली नहीं पहुंचा सकती। ठीक उसी प्रकार, आपके जीवन में किए गए कर्म ही तय करेंगे कि आपकी आत्मा किस गंतव्य की ओर अग्रसर होगी।
आचार्य श्री ने कहा, यदि आपने सुखद कर्म किए हैं, तो उसका फल अवश्य सुख के रूप में प्राप्त होगा। यदि कर्म दुखद हैं, तो परिणाम भी उसी अनुरूप होंगे। चाहे मृत्यु के बाद आपके नाम के आगे ‘स्वर्गवासी’ लिखा जाए, लेकिन आत्मा की गति का निर्धारण तो केवल आपके कर्मों की प्रकृति से ही होगा।
उन्होंने सत्संगति और कुसंगति के प्रभाव पर भी प्रकाश डालते हुए कहा कि अच्छे लोगों की संगति में अच्छे कर्म उत्पन्न होते हैं, जबकि बुरी संगति व्यक्ति को अधोगति की ओर ले जाती है।
मृत्यु भोज सामाजिक कुरीति: महाराज श्री ने मृत्यु भोज जैसी सामाजिक कुरीति की कठोर आलोचना करते हुए कहा, “मृत्यु भोज की परंपरा न केवल अनुचित है, बल्कि यह धर्मविरुद्ध भी है। यह एक सामाजिक विकृति है जिससे समाज को मुक्ति पानी चाहिए। जब व्यक्ति जीवित था, तब भी लोग भोजन करते रहे और मृत्यु के बाद भी यदि उसी के नाम पर भोजन हो, तो यह शुद्ध रूप से अज्ञानता है।

