मिथ्या ज्ञान व्यक्ति को अहंकारी बनाता है, जबकि सम्यक ज्ञान विनम्र: आर्यिका विभा श्री

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रक्षाबंधन पर विज्ञान नगर मंदिर में मनेगा उपर्सग निवारण दिवस, चढेंगे 700 श्रीफल

कोटा। जैन समाज में उपसर्ग निवारण पर्व रक्षाबंधन के रूप में मनाया जाता है। इस पर्व का मूल संदर्भ 700 जैन मुनियों पर आए उपसर्ग (कष्ट/संकट) की रक्षा से जुड़ा है। महामंत्री अनिल जैन ठोरा ने बताया कि इस दिन जैन समाज में मुनिराजों की विशेष पूजा, राखी बांधने की परंपरा, तथा उपसर्ग-दूर करने वाले मुनि विष्णुकुमार और अकंपनाचार्य जी का स्मरण किया जाता है।

ठोरा ने बताया कि सुबह 5.30 से कार्यक्रम प्रारभ हो जाऐगे जिसमें अभिषेक व पूजन विधान का कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा। पी के हरसौरा ने बताया कि इस दिन विशेष रूप से मांडना बना कर 700 श्रीफल चढायें जाएंगे और निर्वाण लाडू भी अर्पित किया जाएगा। दोपहर को गुरूमां विभाश्री माता जी सबको रक्षाबंधन भेंट करेंगी।

अध्यक्ष राजमल पाटौदी ने बताया कि रक्षाबंधन का पर्व परम पूज्य आचार्य श्री 108 विराग सागर जी महाराज, आचार्य श्री 108 विशुद्ध सागर जी महाराज की पावन सन्निधि तथा गणिनी आर्यिका श्री 105 विभाश्री माताजी एवं आर्यिका श्री 105 विनयश्री माताजी (संघ सहित) के निर्देशन में 13 पिच्छियों के सानिध्य में आयोजित होगा।

रितेश सेठी ने बताया कि भगवान श्रेयांश नाथ का मोक्ष कल्याणक दिवस भी इसी दिन होता है अतः 11 किलो का निर्माण लाडू भक्तों द्वारा अर्पित किया जाएगा इस विशाल आयोजन में सूरत भोपाल सीकर देवेंद्र नगर झांसी नागौर से भी भक्तों की आने की पूर्ण संभावना है।

प्रवचन की श्रृंखला में गुरुमां ने आत्मा के गुणों पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए बताया कि साम्य (समत्व भाव) आत्मा का सबसे प्रमुख गुण है। उन्होंने कहा कि संसार में जीवों की स्थिति और तीर्थंकरों की स्थिति में आकाश और पृथ्वी जितना अंतर होता है। यह अंतर ज्ञान और दर्शन के स्तर पर होता है।

गुरूमां ने बताया कि मिथ्या ज्ञान व्यक्ति को अहंकारी बना देता है, जबकि सम्यक ज्ञान व्यक्ति को विनम्र, संयमी और त्यागी बनाता है। उन्होंने कहा कि कम ज्ञान होना ठीक है, लेकिन गलत ज्ञान नहीं होना चाहिए।

क्योंकि मिथ्या ज्ञान व्यक्ति को अधोगति में ले जाता है। किसी व्यक्ति से पाप हो गया है, तो उसके प्रायश्चित के लिए लाखों बार नमोकार मंत्र का जाप करना चाहिए। यह मंत्र न केवल आत्मा को शुद्ध करता है, बल्कि उसे भव-भव के बंधनों से भी मुक्त करता है।