मानव जीवन में किसी के प्रति द्वेष का स्थान नहीं होना चाहिए: विभाश्री माताजी

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कोटा। विज्ञान नगर स्थित दिगंबर जैन मंदिर में मंगलवार को प्रवचन के दौरान गणिनी प्रमुख आर्यिका विभाश्री माताजी ने तत्त्वार्थ सूत्र के सातवें अध्याय का उल्लेख करते हुए कहा कि जीवन में किसी के प्रति द्वेष का स्थान नहीं होना चाहिए।

उन्होंने कहा कि गुणीजन के प्रति प्रमोद, दीन-दुखियों के प्रति करुणा और विपरीत वृत्ति वालों के प्रति माध्यस्थ भाव रखना चाहिए। यही भाव ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की उदार भावना का सार है।

माताजी ने कहा कि पुरुषार्थ और चाहत में अंतर होता है। केवल इच्छा करने से सफलता नहीं मिलती, जब भावना के साथ परिश्रम और पुरुषार्थ जुड़ता है, तभी कार्य सिद्ध होता है।

उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि “जो विद्यार्थी गंभीरता से अध्ययन करता है, वही डॉक्टर बन पाता है। उसी प्रकार जो व्यक्ति भगवान बनने की भावना और साधना रखता है, वह अवश्य ही उस दिशा में आगे बढ़ता है।