मनुष्य जीवन में रोग से नहीं, राग-द्वेष से मुक्ति जरूरी है: गणिनी विभाश्री

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कोटा। विज्ञान नगर स्थित दिगंबर जैन मंदिर में चल रहे चातुर्मास के दौरान शुक्रवार को गणिनी आर्यिका विभाश्री माताजी ने अपने प्रवचनों में कहा यदि पंचमकाल में कोई संत नहीं बन पाया तो कोई बात नहीं, कम से कम धर्म संगिनी तो बन ही सकते हैं। जैसे-जैसे पंचमकाल आगे बढ़ेगा, वैसे-वैसे सुख घटता जाएगा। जब शरीर में ही रोग बढ़ जाएं तो पैसा क्या करेगा?

माताजी ने इस उदाहरण के माध्यम से यह स्पष्ट किया कि भौतिक सुख-सुविधाओं की कोई सीमा नहीं, परंतु यदि जीवन में संयम और धर्म नहीं है, तो वह सुख भी अंततः दुःख का कारण बन जाता है। माताजी ने आगे कहा तत्त्वार्थ सूत्र एक ऐसा ग्रंथ है, यदि इसे सही से समझ लिया जाए तो जीवन में सच्चा धर्म उतर सकता है।

उन्होंने बताया कि यह ग्रंथ मात्र शाब्दिक ज्ञान नहीं, बल्कि आत्मचिंतन और आत्म साक्षात्कार का माध्यम है। संसार में रहकर जो भव्य जीव भगवान बनने की तैयारी करता है, वही वास्तव में बुद्धिमान है। जिस प्रकार खुशबू बिना दिखे भी वातावरण को सुगंधित कर देती है, वैसे ही पुण्य और आत्मानुशासन हमारे जीवन को दिव्यता प्रदान करते हैं।