कोटा। कुन्हाडी स्थित रिद्धि–सिद्धि नगर में आचार्य विनिश्चय सागर महाराज ने बुधवार को अपने प्रवचन में कहा कि मनुष्य हमेशा यह सोचता है कि जीवन बहुत बड़ा है, जबकि वास्तव में जीवन अत्यंत छोटा है। जीवन की अनिश्चितता को समझते हुए धर्म और आत्मकल्याण के कार्यों को टालना उचित नहीं है।
आचार्यश्री ने कहा कि मनुष्य सुख चाहता है, लेकिन चिंता का त्याग नहीं करता। गृहस्थ अपने शरीर और संसार की व्यवस्था में तो समय लगा देता है, परंतु आत्मकल्याण के लिए समय निकल नहीं पाता। शरीर का श्रृंगार करना सभी को अच्छा लगता है, लेकिन आत्मा का श्रृंगार धर्म और सदाचार की ओर कदम बढ़ाना सबसे महत्वपूर्ण है। जब तक व्यक्ति धर्म के मार्ग पर दृढ़ता से नहीं चलता, तब तक वास्तविक कल्याण संभव नहीं है।
उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि जैसे भवन में चोर घुसे होने पर मालिक चिंतित हो जाता है, उसी प्रकार जीवन में मोह और भ्रम रूपी चोर प्रवेश कर जाते हैं, जिन्हें पहचानकर त्यागना आवश्यक है। माता–पिता अपने बच्चों को बहुत प्रेम करते हैं, परंतु उन्हें विवेक देना और सही मार्ग दिखाना भी जरूरी है, क्योंकि केवल लाड़-प्यार से भविष्य सुरक्षित नहीं होता।
आचार्यश्री ने कहा कि यदि कोई व्यक्ति भगवान के चरणों में श्रद्धा नहीं जोड़ता तो उसे जीवन में शांति नहीं मिल सकती। संसार का प्रत्येक जीव अपने कर्मों की खेती स्वयं करता है। अच्छे कर्मों का फल स्वयं को मिलता है और बुरे कर्मों का दंड भी स्वयं को ही भुगतना पड़ता है। परिवार के पालन-पोषण और सामाजिक दायित्वों के साथ-साथ धर्म पालन भी समान रूप से आवश्यक है, क्योंकि यही आत्मा को स्थिरता और आगे बढ़ने का मार्ग प्रदान करता है।
आचार्यश्री ने कहा कि जो व्यक्ति भगवान और धर्म के प्रति श्रद्धावान नहीं होता, जीवन में स्थिरता और शांति प्राप्त नहीं कर पाता। संसार का प्रत्येक जीव अपने कर्मों की खेती स्वयं करता है। अच्छे कर्मों का फल स्वयं को ही प्राप्त होता है और बुरे कर्मों का दंड भी स्वयं को ही भुगतना पड़ता है।

