भौतिक सुख नहीं, आत्मचिंतन में है वास्तविक आनंद: विभाश्री माताजी

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कोटा। रिद्धि-सिद्धि नगर स्थित दिगम्बर जैन मंदिर में गणिनी आर्यिका विभाश्री माताजी ससंघ ने मंगलवार को आयोजित भक्तामर स्तोत्र की कक्षा में अपने मंगल प्रवचन में भक्ति के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि जब तक मनुष्य अपने जीवन में संयम, साधना और आत्मचिंतन को नहीं अपनाता, तब तक वह सच्चे सुख और शांति की अनुभूति नहीं कर सकता।

आर्यिका ने कहा कि आज का मनुष्य बाहरी सुख-सुविधाओं की ओर आकर्षित रहता है, जबकि वास्तविक आनंद आत्मा के भीतर निहित है। आत्म-साधना और संयम के माध्यम से व्यक्ति अपने भीतर छिपी दिव्यता को पहचान सकता है। उन्होंने कहा कि वर्तमान युग में भौतिक उन्नति के पीछे भागते हुए लोग मानसिक शांति खोते जा रहे हैं। ऐसे में स्वाध्याय, ध्यान और संयम का अभ्यास ही जीवन में संतुलन ला सकता है।

माताजी ने कहा कि व्यक्ति को अपने कर्मों के प्रति सदैव सजग रहना चाहिए। यदि हमारे पास समय, धन और अवसर हैं, तो उनका सदुपयोग आत्मकल्याण के लिए करना चाहिए, क्योंकि अवसर बार-बार नहीं मिलते।