इस्लामाबाद। आर्थिक संकट की चपेट में फंसा पाकिस्तान अब अपनी प्राकृतिक संपदा को बेचकर सांस लेने की कोशिश कर रहा है। देश ने हाल ही में अमेरिका को महत्वपूर्ण दुर्लभ खनिजों (रेयर अर्थ मिनरल्स) की पहली सैंपल खेप भेजी है।
यह खेप एक ऐतिहासिक $500 मिलियन (करीब 4,200 करोड़ रुपये) के समझौते का हिस्सा है। लेकिन यह कदम पाकिस्तान की आंतरिक राजनीति में आग लगा चुका है। विपक्षी दल पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) ने इसे ‘गुप्त सौदा’ करार देते हुए सरकार पर राष्ट्रीय हितों की बलि चढ़ाने का आरोप लगाया है। क्या यह पाकिस्तान के लिए आर्थिक मोक्ष है या फिर एक और विदेशी निर्भरता का जाल? आइए, इसकी पूरी कहानी समझते हैं।
पाकिस्तान लंबे समय से अपनी खनिज संपदा को लेकर चर्चा में रहा है। विशेषज्ञों के अनुमान के मुताबिक, देश के पास करीब 6 ट्रिलियन डॉलर (करीब 500 लाख करोड़ रुपये) मूल्य की खनिज संपदा है, जो दुनिया के सबसे बड़े भंडारों में शुमार है।
मुख्य रूप से बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा प्रांतों में ये संसाधन छिपे हैं। इनमें रेर अर्थ एलिमेंट्स जैसे नियोडिमियम और प्रेजियोडिमियम, एंटिमनी, तांबा कंसन्ट्रेट, सोना, टंगस्टन और अन्य महत्वपूर्ण खनिज शामिल हैं।
ये खनिज आधुनिक तकनीक की रीढ़ हैं। इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) की बैटरी, स्मार्टफोन, रिन्यूएबल एनर्जी, रक्षा उपकरण और सेमीकंडक्टर से लेकर सब कुछ इन्हीं पर निर्भर करता है। वैश्विक बाजार में चीन इनका 80% से ज्यादा उत्पादन नियंत्रित करता है, जिससे अमेरिका जैसी महाशक्तियां वैकल्पिक स्रोतों की तलाश में हैं। पाकिस्तान का यह ‘खजाना’ अब अमेरिका के लिए एक आकर्षक अवसर बन गया है।
पिछले महीने, पाकिस्तान की फ्रंटियर वर्क्स ऑर्गनाइजेशन (एफडब्ल्यूओ) ने अमेरिकी कंपनी यूएस स्ट्रैटेजिक मेटल्स (यूएसएसएम) के साथ एक मेमोरेंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए। एफडब्ल्यूओ पाकिस्तानी सेना की इंजीनियरिंग विंग है।
इस समझौते के तहत यूएसएसएम पाकिस्तान में खनिज प्रसंस्करण (प्रोसेसिंग) और विकास सुविधाओं के लिए 500 मिलियन डॉलर निवेश करेगी। कंपनी का मुख्यालय मिसूरी में है और यह क्रिटिकल मिनरल्स के उत्पादन व रिसाइक्लिंग पर फोकस करती है।
2 अक्टूबर को इस्लामाबाद से रवाना हुई यह पहली खेप एक सैंपल कंसाइनमेंट बताई जा रही है, जिसमें एंटिमनी, तांबा कंसन्ट्रेट और दुर्लभ तत्व जैसे नियोडिमियम व प्रेजियोडिमियम शामिल थे। एफडब्ल्यूओ के समन्वय में स्थानीय स्तर पर तैयार की गई यह खेप अमेरिका पहुंच चुकी है।
यूएसएसएम की सीईओ स्टेसी डब्ल्यू. हेस्ट ने इसे “पाकिस्तान-यूएस रणनीतिक साझेदारी का मील का पत्थर” बताया। उन्होंने कहा, “यह हमारी रोमांचक यात्रा का पहला कदम है, जो दोनों देशों के बीच व्यापार और दोस्ती को मजबूत करेगा।”
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने भी इसकी सराहना की। उन्होंने कहा, “यह सुरक्षित और विविधीकृत सप्लाई चेन स्थापित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जो दोनों देशों को लाभ पहुंचाएगा।” अमेरिकी पक्ष से यूएस चार्ज डी अफेयर्स नेटली बेकर ने इसे “द्विपक्षीय संबंधों की मजबूती” का प्रतीक बताया।
पिछले दिनों वाइट हाउस ने एक तस्वीर जारी की थी जिसमें राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पाकिस्तानी सेना प्रमुख फील्ड मार्शल आसिम मुनीर और शहबाज शरीफ के साथ दुर्लभ खनिजों के नमूनों वाले बॉक्स को देखते नजर आ रहे हैं। लेकिन सवाल यह है कि क्या पाकिस्तान वाकई इन खनिजों को ‘बेच’ रहा है?
दरअसल यह सौदा खनिज संसाधनों के दोहन और विदेशी निवेश को आमंत्रित करने का है, जो पाकिस्तान की प्रांतीय संप्रभुता पर सवाल उठा रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि पाकिस्तान के पास अभी इन भंडारों का पूर्ण सर्वेक्षण भी नहीं हुआ है, फिर भी जल्दबाजी में सौदा हो गया।
यह सौदा पाकिस्तान की आंतरिक राजनीति में बवंडर ला चुका है। पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की पार्टी पीटीआई ने इसे “गुप्त और एकतरफा सौदा” बताते हुए सरकार पर हमला बोला है। पार्टी के सूचना सचिव शेख वक्कास अकरम ने कहा, “सरकार को सभी ‘सीक्रेट डील्स’ की पूरी जानकारी संसद और जनता के सामने लानी चाहिए।
ऐसे लापरवाह समझौते देश की अस्थिर स्थिति को और बिगाड़ देंगे।” उन्होंने फाइनेंशियल टाइम्स की एक रिपोर्ट का हवाला दिया, जिसमें दावा किया गया कि पाकिस्तान ने पासनी पोर्ट (ग्वादर के पास) को अमेरिकी निवेशकों को सौंपने का प्रस्ताव दिया है। यह प्रस्ताव $1.2 बिलियन की एक टर्मिनल बनाने के लिए है, जो खनिज निर्यात को सुगम बनाएगी।
पीटीआई का विरोध सिर्फ राजनीतिक नहीं, बल्कि राष्ट्रीय हितों से जुड़ा है। पार्टी का कहना है कि ऐसे सौदे पाकिस्तान की संप्रभुता को खतरे में डालते हैं और विदेशी शक्तियों को देश के संसाधनों पर कब्जा दिला देंगे। बलूचिस्तान में सक्रिय बलूच संगठनों ने भी नाराजगी जताई है। उन्होंने कहा कि यह सौदा क्षेत्र के संसाधनों का विदेशी शोषण है, जो स्थानीय लोगों को लाभ नहीं पहुंचाएगा।
यह सौदा सिर्फ आर्थिक नहीं, बल्कि भू-राजनीतिक भी है। अमेरिका के ‘अनलीशिंग अमेरिकन एनर्जी’ एक्जीक्यूटिव ऑर्डर के तहत, यूएस डिपार्टमेंट ऑफ एनर्जी ने क्रिटिकल मिनरल्स के लिए $1 बिलियन का फंडिंग प्लान किया है। ट्रंप प्रशासन चीन पर निर्भरता कम करने के लिए वैकल्पिक स्रोत तलाश रहा है।
पाकिस्तान, जो अफगानिस्तान और ईरान के बीच स्थित है, एक रणनीतिक पार्टनर बन सकता है। लेकिन सवाल उठता है कि क्या पाकिस्तान चीन के साथ अपने पुराने रिश्तों को संतुलित कर पाएगा? चीन ने भी गिलगित-बाल्टिस्तान में खनिज खोजने के अधिकार हासिल किए हैं।

