मॉस्को। रूसी संसद ने भारत के साथ रेसिप्रोकल एक्सचेंज ऑफ लॉजिस्टिक सपोर्ट (रेलोस) समझौते को मंजूरी दे दी है। इसी के साथ इस समझौते से भारत की समुद्री पहुंच में जबरदस्त इजाफा होने वाले है। इसका सबसे ज्यादा फायदा भारतीय नौसेना को होगा।
अब भारतीय नौसेना हिंद महासागर से लेकर आर्कटिक महासागर तक रूसी नौसैनिक अड्डों का इस्तेमाल कर सकेगी। इतना ही नहीं, इन नौसैनिक अड्डों से भारतीय नौसेना को लॉजिस्टिक सपोर्ट भी मिलेगा, जिससे लंबी दूरी के समुद्री मिशन को अंजाम देने में काफी सहूलियतें मिलेंगी।
रूसी संसद ड्यूमा ने इस समझौते को राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के भारत दौरे से पहले मंजूरी दी थी, हालांकि इस पर दोनों देशों के बीच 18 फरवरी, 2025 को मॉस्को में साइन किया गया था।
रूस के साथ रेलोस समझौता भारत की बड़ी रणनीतिक योजना का हिस्सा है जो 2015 में SAGAR सिद्धांत के साथ शुरू हुई थी। इस सिद्धांत के तहत भारत ने पहली बार एक ज्यादा बड़ी समुद्री भूमिका तय की थी।
इसके बाद इंडो-पैसिफिक ओशन्स इनिशिएटिव (IPOI), इंडियन ओशन नेवल सिंपोजियम (IONS) और इन्फॉर्मेशन फ्यूजन सेंटर–इंडियन ओशन रीजन (IFC-IOR) जैसी पहल की गईं। भारत ने 2016 में अमेरिका के साथ अपना पहला लॉजिस्टिक्स पैक्ट, LEMOA, साइन किया था और तब से जापान, ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस, ओमान और फिलीपींस जैसे पार्टनर्स के साथ ऐसे समझौते को लेकर बातचीत जारी है।
भारत-रूस संबंधों में नया आयाम
पुतिन के भारत दौरे से पहले इस समझौते को मंजूरी मिलना रूस का बहुत बड़ा फैसला माना जा रहा है। यह कदम भारत-रूस मिलिट्री कोऑपरेशन की ऑपरेशनल नींव को मजबूत करता है और दशकों पुरानी स्ट्रेटेजिक पार्टनरशिप के लिए नए कमिटमेंट को दिखाता है। रेलोस एक बाइलेटरल लॉजिस्टिक्स पैक्ट है जो मिलिट्री यूनिट्स को भेजने, पोर्ट कॉल करने, एयरस्पेस और एयरफील्ड्स का इस्तेमाल करने और मिशन्स, जॉइंट एक्सरसाइज और ह्यूमैनिटेरियन या डिजास्टर से जुड़े ऑपरेशन्स के दौरान लॉजिस्टिकल सपोर्ट देने की प्रक्रिया को बताता है।
हिंद महासागर में रूस की बढ़ेगी उपस्थिति
स्टेट ड्यूमा के चेयरमैन व्याचेस्लाव वोलोडिन ने कहा, “भारत के साथ रूस के रिश्ते स्ट्रेटेजिक और कॉम्प्रिहेंसिव हैं। हम उन्हें महत्व देते हैं और समझते हैं कि आज, एग्रीमेंट को रैटिफिकेशन करके, हम रेसिप्रोसिटी, ओपननेस और रिश्तों के डेवलपमेंट की दिशा में एक और कदम उठा रहे हैं।” हालांकि, ऐसा नहीं है कि इस समझौते का फायदा सिर्फ भारत को होगा। रूस भी भारतीय नौसैनिक ठिकानों से ऐसी ही लॉजिस्टिक और सैन्य मदद हासिल कर पाएगा। इससे हिंद महासागर क्षेत्र में रूसी नौसैना की उपस्थिति में जबरदस्त इजाफा होने की संभावना है, जिस पर अभी तक अमेरिका का वर्चस्व है।
रेलोस समझौते से क्या होगा
यह समझौता भारतीय और रूसी सेनाओं को जॉइंट एक्सरसाइज, ट्रेनिंग मिशन, मानवीय ऑपरेशन और आपदा राहत के दौरान ज़्यादा अच्छे से काम करने में मदद करता है। इससे रिफ्यूलिंग, रीप्लेनिशमेंट, मेंटेनेंस और दूसरी लॉजिस्टिक ज़रूरतों को आसान बनाया जा सकेगा। रेलोस, व्लादिवोस्तोक से मरमंस्क तक उत्तरी समुद्री रास्ते पर रूसी नेवल पोर्ट तक पहुंच देकर, खासकर भारतीय नौसेना के लिए भारत की स्ट्रेटेजिक पहुंच को काफी बढ़ाता है।
आर्कटिक क्षेत्र में भारत की बढ़ेगी मौजूदगी
इससे आर्कटिक और ध्रुवीय क्षेत्र में भारत का ऑपरेशनल एक्सपोजर बढ़ने की संभावना है। इस इलाके में भारतीय नौसेना की स्थायी मौजूदगी नहीं है, जो आर्कटिक में भारत की वैज्ञानिक और समुद्री हितों को पूरा करता हो। भारत आर्कटिक में चीन की बढ़ती उपस्थिति को भी काउंटर कर सकता है, जो इस इलाके के लिए सबसे बड़ा खतरा बनकर उभरा है। रूस भी चाहता है कि भारत आर्कटिक क्षेत्रों में अपने नौसैनिक अभियान को तेज करे, जिससे उसे एक स्थायी और भरोसेमंद पार्टनर मिल सके, जो पश्चिमी वर्चस्व को चुनौती देने में उसकी मदद करे।

