भारत ने किया पाक अधिकृत कश्मीर में टेरर इंफ्रास्ट्रक्चर तबाह, जानिए इसके बाद क्या

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नई दिल्ली। पाकिस्तान और पाक अधिकृत कश्मीर में मौजूद टेरर इंफ्रास्ट्रक्चर को जिस कदर नुकसान पहुंचा है, उसे देखते हुए ऑपरेशन सिंदूर के महत्व को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। इन आतंकी ठिकानों को बेहद सटीक खुफिया जानकारी के आधार पर चुना गया था और इनको पूरी तरह तबाह कर दिया गया है। इनमें बहावलपुर में मौजूद जैश-ए-मोहम्मद और मुरीदके में लश्कर-ए-तैयबा के हेडक्वॉर्टर भी शामिल हैं।

निशाना क्या होगा: भारत ने पाकिस्तान में मौजूद आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया। इसके बाद 7 मई की रात को पाकिस्तान ने भारत के उत्तर और पश्चिमी शहरों पर ड्रोन और मिसाइलें दागीं, जिसे भारत ने S-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम से नाकाम कर दिया। यही नहीं, भारत ने पाकिस्तान के कुछ एयर डिफेंस सिस्टम को भी तबाह किया है।

लंबा असर: ऑपरेशन सिंदूर को एक अलग घटना के रूप में भी नहीं देखा जाना चाहिए। भारत ने हाल में जो कदम उठाए हैं, इसे उसी की एक कड़ी के रूप में देखना चाहिए, खासकर सिंधु जल संधि को निलंबित करने के फैसले के साथ। इससे पाकिस्तान की कृषि और खाद्य सुरक्षा पर लंबे वक्त के लिए असर पड़ेगा।

मनोवैज्ञानिक असर: मुरीदके और बहावलपुर स्थित आतंकी अड्डों पर की गई स्ट्राइक पाकिस्तानी सेना, ISI और आतंकी गठजोड़ के लिए एक जबरदस्त झटका है। ऑपरेशन सिंदूर का मनोवैज्ञानिक असर भी है। दशकों से ये दोनों कैंप आतंक के अड्डे रहे हैं और यहीं बैठकर पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवादी भारत के खिलाफ साजिशें रचते रहे हैं।

हिचक दूर हुई: अब तक भारत इन पर सीधे कार्रवाई करने से हिचकता था। इस बार वह हिचक टूटी। भारतीय सेना ने आतंकी ठिकानों को ही तबाह नहीं किया, आतंकी साजिशों को अंजाम देने की उनकी क्षमता को भी कमजोर कर दिया है। यह आतंकवाद के खिलाफ भारत की रणनीति में एक बड़ा और निर्णायक बदलाव दर्शाता है।

सीमित विकल्प: ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तानी सेना और उसकी खुफिया एजेंसी पर दबाव था। इसलिए 7 मई की रात उसने भारतीय शहरों को निशाना बनाने की कोशिश की। दरअसल, ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तानी सेना प्रमुख असीम मुनीर की दुश्वारियां बढ़ गई हैं। पाकिस्तानी फौज ने इसके जवाब में जो कार्रवाई की, उसमें भी उसके हाथ हार लगी। भारत ने पहले ही कहा था कि वह ऐसी किसी हरकत का करारा जवाब देगा और वैसा ही हुआ।

आतंकवाद का इस्तेमाल: वैसे, पाकिस्तान फिर से आतंकवाद का सहारा ले सकता है। उसके लिए जम्मू-कश्मीर या फिर भारत के दूसरे राज्यों में आतंकी गतिविधियां करना ज्यादा आसान विकल्प है। लेकिन, इसमें एक बड़ा खतरा यह है कि इससे एक बार फिर दुनिया के सामने साबित हो जाएगा कि पाकिस्तान ही आतंकवाद का केंद्र है। ऐसे में हो सकता है कि पाकिस्तान अभी इस विकल्प की तरफ न जाए। लेकिन, अगर लंबे वक्त के लिए देखते हैं, तो जब तक उसके यहां आतंकी ढांचे पूरी तरह खत्म नहीं हो जाते, तब तक यह आशंका हमेशा बनी रहेगी कि वह आतंकवाद का इस्तेमाल स्टेट पॉलिसी के रूप में कर सकता है।

जिहादियों का खतरा: पाकिस्तान का सत्ता प्रतिष्ठान आतंकवाद को इस्तेमाल करने का आदी हो चुका है। उन्होंने भारत के साथ ही इस रणनीति का उपयोग अफगानिस्तान के खिलाफ भी किया। वैसे, इस मामले में एक चिंता यह भी है कि आतंक की ट्रेनिंग ले चुके इन जिहादियों को जब काम नहीं मिलेगा तो वे पाकिस्तान के भीतर ही हमला करने लगेंगे। तहरीक-ए-तालिबान का उदाहरण सामने है, जिसने पाकिस्तान की सुरक्षा एजेंसियों की नाक में दम कर रखा है।

आतंकवाद का दानव: पाकिस्तान की सेना और ISI ने 1980 के दशक में अफगान मुजाहिदीनों को पनाह दी। उनके लिए ट्रेनिंग का इंतजाम किया और हथियार पकड़ाए। बाद में वही मॉडल जम्मू-कश्मीर में आतंक फैलाने के लिए इस्तेमाल किया गया। पाकिस्तान ने तब जिस दानव को खड़ा किया था, आज वही उसे निगलने के लिए तैयार है। अगर उसने पले-बढ़े आतंकियों को समय-समय पर बाहर नहीं भेजा, तो वे उसे ही खत्म कर देंगे। यही वजह है कि पाकिस्तान से निकलने वाला आतंकवाद पूरी दुनिया के लिए एक समस्या बन चुका है। ओसामा बिन लादेन का पाकिस्तान के सैनिक अड्डे वाले शहर एबटाबाद में मिलना इस बात का पुख्ता सबूत है कि वहां आतंकी ढांचा कितना मजबूत और गहरे तक जड़ें जमाए हुए है।