भारतीय एयरबेस बंद करने की रूस-चीन ने मिलकर कैसे की साजिश, जानिए

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नई दिल्ली। मध्य एशिया की ऊबड़-खाबड़ पहाड़ियों में छिपा एक रणनीतिक ठिकाना भारत के लिए पाकिस्तान और चीन के खिलाफ एक ‘ट्रंप कार्ड’ था। लेकिन अब वह ठिकाना हाथ से फिसल चुका है। हम बात कर रहे हैं ताजिकिस्तान के आयनी एयरबेस की।

भारत ने मध्य एशिया के रणनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण ताजिकिस्तान के आयनी एयरबेस से अपनी सैन्य मौजूदगी लगभग दो दशकों बाद समाप्त कर दी है। आयनी एयरबेस भारत के लिए दक्षिण एशिया से बाहर एक रणनीतिक ठिकाना था, जिससे नई दिल्ली को मध्य एशिया में अपनी सैन्य उपस्थिति और प्रभाव बनाए रखने का अवसर मिला था।

इस ठिकाने के माध्यम से भारत को पाकिस्तान के वायुक्षेत्र को बायपास करते हुए अफगानिस्तान और मध्य एशिया में आवश्यक संचालन की क्षमता प्राप्त थी। रिपोर्ट्स के मुताबिक, रूस और चीन ने मिलकर ताजिकिस्तान पर दबाव डाला, जिससे भारत को अपनी सैन्य उपस्थिति समेटनी पड़ी। क्या ये महज कूटनीतिक दबाव था या एक सुनियोजित साजिश? आइए इसकी इनसाइड स्टोरी समझते हैं।

साल 2002। अफगानिस्तान में तालिबान का साया मंडरा रहा था। भारत ने ताजिकिस्तान के साथ सैन्य सहयोग बढ़ाया। आयनी एयरबेस राजधानी दुशांबे से महज 10 किलोमीटर दूर है। यह सोवियत युग का एक पुराना हवाई अड्डा था। भारत ने इसे नया जीवन दिया।

लगभग 70-80 मिलियन डॉलर (करीब 500 करोड़ रुपये) खर्च करके रनवे को 3,200 मीटर लंबा बनाया, हैंगर बनवाए, ईंधन डिपो स्थापित किए। माना जाता है कि यह भारत का पहला विदेशी एयरबेस था- कोई स्थायी फाइटर स्क्वाड्रन नहीं, लेकिन दो-तीन Mi-17 हेलीकॉप्टर ताजिकिस्तान को गिफ्ट में दिए गए थे, जिन्हें भारतीय वायुसेना (IAF) के पायलट उड़ा रहे थे।

रणनीतिक महत्व? आयनी अफगानिस्तान के वाखान कॉरिडोर से सटा है, जो पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (PoK) से महज 20 किलोमीटर दूर है। यानी अगर पीओके पर पाक का कब्जा नहीं होता तो ताजिकिस्तान हमारा पड़ोसी देश होता। आयनी एयरबेस से भारतीय Su-30 MKI जैसे फाइटर जेट्स पेशावर या इस्लामाबाद तक को निशाना बना सकते थे। चीन के शिनजियांग प्रांत से भी सटी सीमा इसे दुश्मनों के लिए दोहरी चुनौती बनाती।

2001 में तालिबान के अफगानिस्तान कब्जे के दौरान भारत ने इसी बेस से अपने नागरिकों को निकाला था। यह न सिर्फ ह्यूमैनिटेरियन मिशनों के लिए था, बल्कि पाकिस्तान-चीन गठजोड़ को नजरअंदाज करने का तरीका। लेकिन शुरुआत से ही इस पर रूस की छाया थी।

ताजिकिस्तान रूस-नीत कलेक्टिव सिक्योरिटी ट्रीटी ऑर्गनाइजेशन (CSTO) का सदस्य है। मानाजाता है कि भारत ने रूस की मंजूरी से ही यहां कदम रखा। 2011 में ताजिकिस्तान ने रूस को ही बेस सौंपने की बात कही। फिर भी, भारत ने 2021 तक लीज बढ़ाने की कोशिश की- यहां तक कि सुखोई (Su-30) जेट्स भी तैनात किए थे।

ताजिकिस्तान कभी सोवियत संघ का हिस्सा था। वह अफगानिस्तान, चीन, किर्गिस्तान और उज्बेकिस्तान की सीमाओं से जुड़ा है। यह क्षेत्र रूस, चीन और भारत जैसे तीनों परमाणु शक्तियों के लिए प्रभाव क्षेत्र का केंद्र बना हुआ है। भारत की वापसी यह संकेत देती है कि मध्य एशिया धीरे-धीरे रूस और चीन के प्रभाव क्षेत्र में और गहराई से समाहित हो रहा है।

बता दें कि रूस-नेतृत्व वाले CSTO में रूस, कजाखस्तान, किर्गिस्तान, आर्मेनिया और बेलारूस जैसे देश भी शामिल हैं। इसके अलावा, ताजिकिस्तान को चीन, यूरोपीय संघ, भारत, ईरान और अमेरिका से भी सीमा सुरक्षा और आतंकवाद-रोधी परियोजनाओं के लिए आर्थिक सहायता मिलती है। ताजिकिस्तान में रूस का सबसे बड़ा विदेशी सैन्य ठिकाना भी स्थित है, जबकि चीन भी वहां सुरक्षा निवेश बढ़ा रहा है।

द प्रिंट की रिपोर्ट के अनुसार, ताजिकिस्तान ने 2021 में भारत को सूचित किया था कि आयनी एयरबेस की लीज अब आगे नहीं बढ़ाई जाएगी। इसके बाद भारत ने 2022 में धीरे-धीरे अपनी सेनाएं और उपकरण हटाने की प्रक्रिया शुरू कर दी। लीज न बढ़ाने के पीछे आधिकारिक कारण ‘गैर-क्षेत्रीय सैन्य कर्मियों’ की मौजूदगी बताया गया। लेकिन असलियत कुछ और थी।

मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, रूस और चीन का दबाव असली वजह थी। दरअसल रूस, भारत का ‘ऑल वेदर फ्रेंड’ यानी सदाबहार दोस्त है। वह CSTO के जरिए ताजिकिस्तान को भी कंट्रोल करता है। रूस को चिंता थी कि भारत का झुकाव पश्चिमी देशों की ओर बढ़ रहा है और इससे मध्य एशिया में ‘बाहरी हस्तक्षेप’ बढ़ेगा। 2007 में ही रूस ने भारत को आयनी से हटाने की कोशिश की थी, जब न्यूक्लियर डील के कारण भारत-पश्चिम संबंध मजबूत हो रहे थे।

लोग इसे ‘दोस्ताना धोखा’ बता रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि रूस ने पहले फरखोर एयरबेस पर भी ऐसा ही किया जहां भारत ने करोड़ों खर्च किए, फिर रूस ने ताजिकिस्तान को मजबूर कर हमें हटाया और खुद तैनात हो गया। एक पुरानी घटना याद दिलाती है कि रूस का ‘स्फीयर ऑफ इन्फ्लुएंस’ मध्य एशिया में अटल है। भारत के S-400 डील के बावजूद, रूस ने क्षेत्रीय संतुलन को प्राथमिकता दी।

चीन का छिपा हाथ
अब चीन की बात करते हैं। चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) ताजिकिस्तान को कर्ज के जाल में फंसा चुकी है। 2019 में सैटेलाइट इमेजेस से पता चला कि चीन ने ताजिकिस्तान-अफगानिस्तान सीमा पर सैन्य बेस बनाया- भारत के आयनी बेस से महज कुछ किलोमीटर दूर। चीन को डर था कि आयनी बेस से भारत उसके शिनजियांग में उइगर विद्रोहियों को सपोर्ट कर सकता है।

साथ ही, PoK के पास भारत की मौजूदगी CPEC (चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर) को खतरा साबित हो सकती थी। रूस-चीन की पार्टनरशिप यहां काम आई। दोनों ने CSTO और शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन (SCO) के जरिए ताजिकिस्तान को अपने पाले में लिया।

कूटनीतिक दबाव या गुप्त समझौता?
2022 में भारत की वापसी चुपचाप हो गई। हेलीकॉप्टर, इंजीनियर्स, ट्रेनिंग टीम सब हटा लिए गए। लेकिन खबर 2025 में लीक हुई। क्यों इतनी देरी? रूस को यूक्रेन युद्ध के बाद पश्चिमी प्रतिबंधों से जूझना पड़ रहा। भारत को ‘पश्चिमी गुट’ में जाते देख, रूस ने CSTO में अपनी पकड़ मजबूत की। 2011 में ही रूस ने आयनी पर ‘जॉइंट यूज’ का दावा किया, लेकिन ताजिकिस्तान ने इनकार कर दिया। अब ऐसा लगता है कि रूस ने खुद बेस पर कब्जा जमा लिया है।