कोटा। विज्ञान नगर स्थित दिगंबर जैन मंदिर में चल रहा गणिनी आर्यिका विभाश्री माताजी एवं विनयश्री माताजी (ससंघ) का चातुर्मास चल रहा है। गणिनी आर्यिका विभाश्री माताजी ने मंगलवार को अपने प्रवचन में कहा कि संसार सागर में भटकी आत्माओं के लिए यदि कोई सच्चा सहारा है, तो वह है भगवान की भक्ति।
उन्होंने बताया कि सांसारिक जीव का चंचल मन बंदर के समान होता है, जो स्थिर नहीं रह सकता। जब तक इस चंचलता को नियंत्रित करने का प्रयास नहीं किया जाएगा, तब तक आत्मिक शांति संभव नहीं।
माताजी ने तत्त्वार्थ सूत्र एवं भवतारक स्तोत्र के रहस्यों का उल्लेख करते हुए कहा कि भगवान की भक्ति ही ऐसा साधन है, जिससे अनगिनत जन्मों के पाप कर्म एक क्षण में नष्ट हो जाते हैं। उन्होंने बताया कि तीसरे अध्याय में अधोलोक, मध्यलोक और ऊर्ध्वलोक का गहन वर्णन किया गया है। हम सभी वर्तमान में मध्यलोक में भारतक्षेत्र के आर्यखंड में निवास करते हैं।
माताजी ने श्रद्धालुओं से आह्वान किया कि वे अपने चंचल मन को वश में कर प्रभु भक्ति में लगाएं, क्योंकि भगवान की भक्ति के बिना आत्मा की गति संभव नहीं। उन्होंने कहा कि जो आत्मा प्रभु की भक्ति में रम जाती है, वही मुक्तिपथ की ओर अग्रसर होती है।

