नई दिल्ली। आयातक देशों से अधिक से अधिक आर्डर प्राप्त करने हेतु भारतीय निर्यातकों को अपने बासमती चावल का निर्यात ऑफर मूल्य घटाकर आकर्षक स्तर पर रखना पड़ रहा है जिससे इसकी निर्यात आय में भी कमी आ रही है।
पिछले साल बासमती चावल का औसत इकाई निर्यात मूल्य 1040 डॉलर प्रति टन चल रहा था जो चालू वर्ष में घटकर 875 डॉलर प्रति टन रह गया है। बासमती चावल के निर्यात मूल्य में आ रही गिरावट से ऐसे निर्यातकों के कारोबार की निरंतरता के बारे में संदेह उत्पन्न होने लगा है जो पहले ही ऊंचे दाम पर बासमती धान की खरीद इस उम्मीद से कर चुके हैं कि मध्य-पूर्व में जारी विवाद के बीच बासमती चावल की मांग एवं कीमत में बढ़ोत्तरी हो सकती है।
सितम्बर 2024 में सरकार ने जब बासमती चावल के लिए लागू 950 डॉलर प्रति टन के न्यूनतम निर्यात मूल्य (मेप) को समाप्त करने की घोषणा की थी तब निर्यात ऑफर मूल्य 1040 डॉलर प्रति टन था जो अब घटते हुए 875 डॉलर प्रति टन से भी नीचे आ गया है। इससे निर्यात आय में स्वाभाविक रूप से गिरावट आ रही है।
बासमती चावल के वैश्विक निर्यात बाजार में भारत को मुख्यतः पाकिस्तान की चुनौती का सामना करना पड़ता है। एक व्यापार विश्लेषक का कहना है कि सरकार को सस्ते निर्यात पर अंकुश लगाने का प्रयास करना चाहिए
क्योंकि दाम घटने से कुछ लोग बासमती चावल में गैर बासमती चावल का मिश्रण करके उसका निर्यात कर सकते हैं जिससे अंतर्राष्ट्रीय बाजार में भारतीय बासमती चावल की विश्वसनीयता को ठेस लग सकती है।
यदि घरेलू बाजार में बासमती चावल का लागत खर्च ऊंचा बैठेगा तब निर्यातक नीचे दाम पर इसका विदेशों में निर्यात करने में कठिनाई महसूस करेंगे और ऐसी स्थिति में कुछ लोग बासमती चावल की निर्यात योग्य क्वालिटी के साथ समझौता कर सकते हैं।
समझा जाता है कि चालू माह के दौरान भारत से ईरान को 700 डॉलर प्रति टन से भी नीचे मूल्य पर बासमती चावल की कुछ खेप भेजी गई है जबकि संयुक्त अरब अमीरात तथा सऊदी अरब जैसे देशों में इसका औसत मूल्य 900-950 डॉलर प्रति टन के बीच बताया जा रहा है।
आधिकारिक सूत्रों के अनुसार केन्द्रीय वाणिज्य मंत्रालय के अधीनस्थ निकाय- कृषि एवं प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) ने सस्ते दाम पर बासमती चावल के निर्यात को नियंत्रित करने का प्रयास आरंभ कर दिया है।
एपीडा उन निर्यातकों से सम्पर्क कर रहा है जिसने नीचे मूल्य पर चावल का अनुबंध किया है लेकिन निर्यातक कह रहे हैं कि पिछले व्यापारिक करार की क्षतिपूर्ति के लिए अब नीचे दाम पर शिपमेंट करना पड़ रहा है।
समीक्षकों का कहना है कि इस समस्या का हल खोजने की आवश्यकता है। इसके लिए या तो न्यूनतम निर्यात मूल्य को दोबारा लागू किया जा सकता है या फिर गुणवत्ता नियंत्रण का ठोस एवं सख्त उपाय किया जा सकता है।

