कोटा। शाहबाद कंजर्वेशन रिजर्व एवं घाटी बचाओ संघर्ष समिति तथा चंबल संसद के पदाधिकारी ने बारां जिले में प्रस्तावित शाहबाद हाइड्रो पावर प्लांट एवं कंवाई में थर्मल पावर प्लांट के विस्तार में पर्यावरणीय मानकों के घोर उल्लंघन पर आपत्ति जताते हुए महत्वपूर्ण सुझाव देते हुए सरकार से इन परियोजनाओं पर पुनर्विचार की मांग की है। उन्होंने प्रबुद्धजनों से पर्यावरण बचाने के लिए जन-जागरूकता का आव्हान किया।
शाहबाद घाटी कंजर्वेशन रिजर्व संघर्ष समिति के संरक्षक पर्यावरणविद् प्रशांत पाटनी, चम्बल संसद अध्यक्ष कुंज बिहारी नंदवाना, संरक्षक जीडी पटेल, भारतीय राष्ट्रीय सांस्कृतिक निधि इंटेक, बारां के कंवीनर जितेंद्र शर्मा, यज्ञदत्त हाडा, राष्ट्रीय किसान समन्वय समूह के संयोजक दशरथ कुमार, युवा किसान नेता जगदीश शर्मा, चम्बल संसद संयोजक बृजेश विजयवर्गीय, कोटा एनवायरनमेंटल सेनीटेशन सोसायटी के राजेंद्र जैन, रामकृष्ण शिक्षण संस्थान के महासचिव पूर्व पार्षद युधिष्ठिर चांनसी, शाहबाद निवासी गब्बर सिंह यादव एवं पंचकर्म पर्यावरण गतिविधियों के सदस्यों ने यहां बताया कि शाहबाद में हाइड्रो पावर प्लांट पम्पड स्टोरेज एवं कंवाई में पर्यावरण मानकों की घोर उपेक्षा हो रही है।
उन्होंने बताया कि शाहबाद में 300 से अधिक वन औषधियां हैं जो देश भर में दुर्लभ है तथा पैंथर भालू, सेही, हिरण, जंगली सूअर समेत दो दर्जन से अधिक दुर्लभ वन्य जीव विचरण कर रहे हैं। माधव नेशनल पार्क शिवपुरी से बाघ भी आते रहे हैं।
शाहबाद की ओर कूनो नेशनल पार्क से चीता परियोजना में विचरण कर रहे चीते तीन बार शाहबाद की ओर आ चुके हैं एवं आने का प्रयास करते रहते हैं। चीता परियोजना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पसंदीदा योजना है। कूनो नदी शाहाबाद एवं कूनो के जंगल को जोड़ने के लिए प्राकृतिक गलियारा है।
इन लोगों ने कहा कि पर्यावरण को बचाना विकास की खिलाफत नहीं है, पर्यावरण को बचाते हुए भी विकास कार्य हो सकते हैं। इसके लिए उन्होंने महत्वपूर्ण सुझाव भी सरकार को दिए हैं। पाटनी ने कहा कि खनन से कोटा स्टोन के मलबे से बन चुके पहाड़ों को पम्पड स्टोरेज प्लांट के लिए चुन सकते हैं।
इन पर्यावरणविदों ने कहा कि सरकारी स्तर पर जब सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा से बिजली बनाने की परियोजनाएं संचालित है तो पर्यावरण को न्यूनतम नुकसान पहुंचाने वाली योजनाओं पर ही काम होना चाहिए। कोल आधारित कंवाई में थर्मल पावर प्लांट से स्थानीय कृषि उत्पादन पर दुष्प्रभाव पड़ेगा। वहीं तो तापमान बढ़ने से कई तरह की बीमारियां पैदा होगी। हमारी कृषि आधारित अर्थव्यवस्था को नुक्सान होगा।
नंदवाना ने कहा कि चम्बल शुद्धिकरण पर सरकार कतई गंभीर नहीं है। नदियों के शोषण को ही विकास मानना बड़ी भूल है। जीडी पटेल ने जन आंदोलन पर जोर दिया। विजयवर्गीय ने कहा कि जल, जंगल, जमीन का संरक्षण ही असली विकास है, सरकार को इसे समझना चाहिए।

