नए मंदिरों के निर्माण से अधिक महत्व प्राचीन मूर्तियों के संरक्षण का है: प्रज्ञासागर
कोटा। आचार्य प्रज्ञासागर मुनिराज ससंघ के सान्निध्य में बुधवार को श्री आदिनाथ दिगम्बर जैन मंदिर बालिता (कुन्हाड़ी) में प्राचीन जिन बिम्बों की स्थापना विधिवत संपन्न हुई।
यतीश जैन खेडावाला ने बताया कि कार्यक्रम की शुरुआत दिगम्बर जैन मंदिर निलय से सुबह 7.30 बजे निकाली गई शोभायात्रा से हुई, जो गाजे-बाजे तथा बैंड की धुन के साथ सैकड़ों धर्मप्रेमियों की अगुवाई में बालिता स्थित मंदिर परिसर पहुंची।
गुरु आस्था परिवार के अध्यक्ष लोकेश जैन ने बताया कि शोभायात्रा में प्रज्ञासागर मुनिसंघ का सान्निध्य प्राप्त हुआ तथा गोहटा से प्राप्त लगभग 535 वर्ष पुरानी प्रतिमाएं विशेष आकर्षण का केंद्र रहीं। मार्ग में अनेक स्थानों पर श्रद्धालुओं द्वारा आचार्यश्री के पादपक्षालन संपन्न की गईं।
संयोजक एवं कोषाध्यक्ष महावीर जैन ने बताया कि बालिता स्थित मंदिर में बुधवार को वार्षिक उत्सव का आयोजन किया गया। प्रातः शांतिधारा एवं अभिषेक उपरांत विधानाचार्य पंडित उदय शास्त्री द्वारा आदिनाथ विधान 80 अर्घो से संपन्न कराया। इसके अंतर्गत गोहटा से प्राप्त अरहनाथ, पाश्वनार्थ एवं सुपाश्वनार्थ भगवान की प्राचीन प्रतिमाओं की स्थापना का सौभाग्य विभिन्न परिवारों को प्राप्त हुआ।
प्रज्ञासागर मुनिराज ने इस अवसर पर अपने प्रवचन में कहा कि जिन स्थानों पर प्राचीन प्रतिमाएं स्थापित होती हैं, वे स्थल स्वयं ‘अतिशय क्षेत्र’ का स्वरूप धारण कर लेते हैं। नए मंदिरों के निर्माण से अधिक महत्व प्राचीन मूर्तियों के संरक्षण का भी है, जो वर्तमान समय में अत्यंत आवश्यक है।
मंदिर अध्यक्ष कैलाश जैन ने बताया कि विधानाचार्य पंडित उदय शास्त्री द्वारा आदिनाथ विधान 80 अर्घ्यों से विधिवत संपन्न कराया। रात 8 बजे संगीतमय महाआरती एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किए गए। जिनदेशना में सकल समाज के सैकड़ों श्रद्धालु उपस्थित रहे।

