पूजन में वस्तु की मौलिकता और शुद्धता को बनाए रखना आवश्यक: आचार्य प्रज्ञासागर

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कोटा। प्रज्ञासागर महाराज ने अपने गुरुवार को अपने प्रवचन में पूजन में शुद्धता और द्रव्य की पवित्रता पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए कहा कि “पूजन द्रव्य वही है, जो अपने वास्तविक स्वरूप में शुद्ध और उपयोग योग्य हो। जिस वस्तु का उपयोग भगवान की आराधना में किया जाए, उसे कृत्रिम रूप या विकृति देकर नहीं चढ़ाना चाहिए।”

उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि आजकल चावल में कृत्रिम रंग मिलाकर पूजा में उपयोग किया जाता है, जिससे वह द्रव्य अपने वास्तविक स्वरूप में नहीं रहता और जीवों के सेवन योग्य भी नहीं रहता। इसी प्रकार केसर के स्थान पर रंग मिलाना भी अनुचित है। पूजन में द्रव्य को उसके प्राकृतिक रूप में ही अर्पित करना शास्त्रोचित माना गया है।

गुरुदेव ने शास्त्रों का उल्लेख करते हुए कहा कि महाराज यशोधर ने आटे से मुर्गा बनाकर चढ़ाया, जिससे उन्हें विक्रत पूजन का दोष लगा और नरक गमन करना पड़ा। इससे स्पष्ट होता है कि पूजन का अर्थ दिखावा नहीं, बल्कि आस्था और शुद्धता है।

उन्होंने आगे कहा कि आजकल लोग नारियल को विभिन्न आकारों में ढालकर “लड्डू” बताकर भगवान को अर्पित करते हैं, जबकि यह सही नहीं है। जैसे किसी व्यक्ति को भोजन पर बुलाकर एक ही पदार्थ को अलग-अलग आकारों में परोसा जाए, चाहे वह चावल लड्डू, इमरती या खीर के रूप में हो। उसका स्वाद और स्वभाव तो वही रहेगा, वह परिवर्तित नहीं होगा। इसी प्रकार पूजन में भी वस्तु की मौलिकता को बनाए रखना आवश्यक है।

गुरुदेव ने कहा कि “भगवान को वही फल अर्पण करना चाहिए जो पांचों इंद्रियों को प्रिय लगे और स्वास्थ्यवर्धक हो। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि भारत में 300 से अधिक प्रकार के आम उपलब्ध हैं, फिर भी लोग विदेशी फल ड्रैगन फ्रूट की ओर आकर्षित होते हैं। प्रत्येक फल का अपना मौसम और गुण होता है, अतः हमें प्रकृति प्रदत्त फलों का सेवन और पूजन में उपयोग करना चाहिए।