कोटा। आचार्य प्रज्ञासागर ने अपने प्रवचन में अनार को जीवन और परिवार के लिए प्रेरणा स्रोत बताया। उन्होंने कहा कि अनार स्वास्थ्यवर्धक और रक्तवर्धक होने के साथ-साथ हमें सामाजिक और पारिवारिक जीवन की गहरी सीख भी देता है। बुजुर्ग इसे यूं ही “एक अनार सौ बीमार” यूं ही नहीं कहते।
आचार्य श्री ने कहा कि अनार के दाने छिलका हटने के बाद भी बिखरते नहीं, बल्कि आपस में जुड़े रहते हैं। यह परिवार की एकता का प्रतीक है। परिस्थितियाँ कैसी भी हों, परिवार के सदस्य को मिलजुलकर रहना चाहिए। यदि कोई परिवार को तोड़ने का प्रयास करे, तो जैसे अनार के दाने अलग करने पर हाथ काले हो जाते हैं, वैसे ही ऐसे व्यक्तियों की पहचान करना सरल है।
उन्होंने कहा कि पारिवारिक जीवन का वास्तविक आनंद संयुक्त परिवार में ही है। संयुक्त परिवार में कार्यों का बंटवारा सहजता से होता है, बीमारी या कठिनाई के समय जिम्मेदारियाँ बाँट ली जाती हैं। वहीं अलगाव की स्थिति में व्यक्ति को सुबह से शाम तक सभी दायित्व स्वयं ही निभाने पड़ते हैं।
आचार्य श्री ने आर्थिक दृष्टि से भी संयुक्त परिवार के महत्व को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि यदि संयुक्त परिवार का संयुक्त व्यवसाय होता है तो घाटा किसी एक का नहीं, पूरे फर्म का माना जाता है। एक दुकान का घाटा दूसरी दुकान पूरा कर देती है। इसी प्रकार बच्चों के पालन-पोषण में भी संयुक्त परिवार सहयोगी बनता है, जबकि अकेले परिवार में बच्चे अक्सर चिड़चिड़े और जिद्दी हो जाते हैं।
उन्होंने अंत में कहा कि अनार का संदेश स्पष्ट है- परिवार और समाज की एकता ही जीवन की सबसे बड़ी शक्ति है। परिवार को बचाना और एकजुट रखना ही सच्चे सुख और शांति का मार्ग है।

