पाप की अनुमोदना दुर्गति एवं पुण्य की अनुमोदना सद्गति: आर्यिका विभाश्री

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रिद्धि-सिद्धि नगर जैन मंदिर में श्री सिद्धचक्र महामंडल विधान में 512 अर्घ्य समर्पित

कोटा। रिद्धि-सिद्धिनगर स्थित जैन मंदिर परिसर में चल रहे 151 मण्डलीय श्री सिद्धचक्र महामंडल विधान के सातवें दिवस सोमवार को श्रद्धालु श्रावकों द्वारा 512 अर्घ्य समर्पित किए गए। विधान के दौरान आर्यिका विभाश्री गुरु माँ संसंघ समोशरण में विराजमान रहीं। इस दौरान बड़ी संख्या में उपस्थित श्रद्धालुओं ने विविध आध्यात्मिक विषयों पर प्रश्न पूछे, जिनका पूज्य गुरु माँ ने ज्ञानपूर्ण उत्तर दिया।

समोशरण में एक श्रावक ने प्रश्न किया “हमारा ऐसा पुण्य उदय कब होगा कि हम स्वयं अपना सिद्धचक्र महामंडल विधान करा सकें?” इस पर पूज्य गुरु माँ ने उत्तर दिया “जो जीव निरंतर भगवान की भक्ति करता है, उसका पुण्य संचय बढ़ता है। यही पुण्य एक दिन उसे ऐसा अवसर देता है कि वह स्वयं सिद्धचक्र महामंडल विधान करा सके। जब कोई व्यक्ति पुण्य कार्य की अनुमोदना करता है या पुण्य भावना रखता है, तब सातिशय पुण्य का बंध होता है।”

इसी क्रम में कुबेर महाराज ने प्रश्न किया “क्या जैसे पुण्य कार्य की अनुमोदना का फल मिलता है, वैसे ही पाप कार्य की अनुमोदना का भी फल मिलता है?” इस पर पूज्य गुरु माँ ने उदाहरण सहित उत्तर देते हुए कहा “प्राचीन काल में श्रीपाल ने एक मुनि को ‘कोढ़ी-कोढ़ी’ कहकर निंदा की और 700 लोगों ने उसकी निंदा की अनुमोदना में ताली बजाई।

परिणामस्वरूप श्रीपाल और उन सभी को कुष्ठ रोग हुआ। बाद में श्रीपाल ने श्री सिद्धचक्र महामंडल विधान किया, जिससे उसका रोग दूर हुआ। जिन्होंने उसकी पुण्य अनुमोदना की, उनके भी कष्टों का निवारण हुआ। अतः हमें पाप की अनुमोदना से सदैव बचना चाहिए और पुण्य की अनुमोदना के लिए निरंतर प्रयत्नशील रहना चाहिए। पाप की अनुमोदना दुर्गति का कारण है, जबकि पुण्य की अनुमोदना सद्गति प्रदान करती है।”

इसी अवसर पर सौधर्म इन्द्र ने प्रश्न किया “मनुष्य पर्याय को सार्थक और सफल कैसे बनाया जा सकता है?” इस पर गुरु माँ ने उत्तर दिया “मोहनीय कर्म आत्मा के पवित्र भावों को विकृत करता है और राग-द्वेष उत्पन्न करता है। संसार में बहुत कम लोग ऐसे हैं जो मोक्ष की इच्छा रखते हैं; अधिकांश लोग धन, परिवार और स्वर्ग की कामना में लिप्त रहते हैं। जिनेन्द्र भगवान की भक्ति सब कुछ देने वाली है दरिद्र को धन, पुत्रहीन को पुत्र और अंततः मोक्ष प्रदान करने वाली। जीवन को सार्थक बनाने के लिए सच्चे देव, शास्त्र और गुरु को नमस्कार करने का नियम अपनाना चाहिए।”