कोटा। आनंद यात्रा समाधान के दौरान गुरुवार को परम पूज्य गुरुदेव प्रज्ञासागर महाराज ने रयणसार की 62वीं गाथा का संदर्भ देते हुए कहा कि सम्यक मार्ग सुगति का कारण है, जबकि मिथ्यात्व दुर्गति की ओर ले जाता है। उन्होंने कहा कि गुरु का कार्य केवल सही मार्ग दिखाना है, उसे स्वीकार करना या न करना साधक के अपने विवेक पर निर्भर करता है।
गुरुदेव ने कहा कि पुण्य का अर्जन और पाप का त्याग ही जीवन को उत्कृष्ट बनाता है। शुभ करो और अशुभ त्यागो, यही वास्तविक समझ है। गुरु का वचन मानना ही सच्चा समृद्धि मार्ग है। उन्होंने स्पष्ट किया कि पंचम काल में भले ही मोक्ष का द्वार बंद है, किंतु मोक्षमार्ग अभी भी खुला है और सद्कर्मों से उसकी ओर कदम बढ़ाए जा सकते हैं।
गुरुदेव ने कहा कि पाप का दंड केवल कानून तक सीमित नहीं है, इसका फल इस लोक और परलोक दोनों में भोगना पड़ता है। पाप दुर्गति का कारण है, इसलिए पाप की प्रवृत्तियों को त्यागना आवश्यक है। प्रभु और गुरु के चरणों का आश्रय लेने से शुभगति निश्चित है। भगवान के चरण पकड़ने का अर्थ पुण्य का दृढ़ता से धारण करना है।
प्रज्ञासागर का कल के. पाटन में मंगल आगमन
आचार्य प्रज्ञासागर महाराज ससंघ शनिवार, को देवाशीष सिटी से प्रातः 7 बजे स्टेशन स्थित पार्श्वनाथ दिगंबर जैन मंदिर की ओर मंगल विहार करेंगे। तत्पश्चात दोपहर 2 बजे ससंघ का प्रस्थान भगवान मुनिसुव्रतनाथ दिगंबर जैन अतिशय क्षेत्र, केशवराय पाटन के लिए होगा।
गुरु आस्था परिवार के महामंत्री नवीन जैन दौराया ने बताया कि राजस्थान की प्राचीन और पौराणिक नगरी केशवराय पाटन की पावन धरा पर आचार्यश्री का सांय 5:30 बजे भव्य मंगल आगमन प्रस्तावित है। चंबल नदी तट पर आयोजित होने वाले इस कार्यक्रम के लिए समाज में व्यापक उत्साह व्याप्त है।

