कोटा। संध्याकालीन मंगल जिनदेशना के दौरान गुरुवार को आचार्य प्रज्ञासागर मुनिराज ने मांगलिया मंडाना में उपस्थित श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कहा कि जीवन में शुभ, मंगल और कल्याणकारी कार्यों को बिना विलंब तुरंत करना चाहिए। क्योंकि अच्छे कार्यों को कल पर टालने की प्रवृत्ति मनुष्य को आध्यात्मिक प्रगति से दूर ले जाती है।
आचार्यश्री ने क्रोध पर नियंत्रण का महत्व समझाते हुए कहा कि जब भी मन में ‘गुरु—साव’ अर्थात आवेश उत्पन्न हो, तब सिर्फ पाँच मिनट रुक जाना चाहिए। जो व्यक्ति इन पाँच मिनटों पर नियंत्रण कर लेता है, वही वास्तविक रूप से अपने आप पर विजय प्राप्त कर लेता है। उन्होंने कहा कि परिवर्तन लंबी लड़ाई से नहीं, बल्कि पाँच मिनट के धैर्य से संभव है।
आचार्य प्रज्ञासागर ने कहा कि अक्सर हमें लगता है कि जिस कारण से हम क्रोधित हो रहे हैं, वह पूर्णतः सही है, लेकिन सत्य पर कभी क्रोध नहीं होता। सत्य तो सुधार का मार्ग दिखाता है। यदि कोई बात असत्य या तुच्छ हो, तो उसे नजरअंदाज कर देना ही उत्तम है।
उन्होंने आगे कहा कि जिस प्रकार लोग अंधविश्वास में बिल्ली के रास्ता काटने पर रुक जाते हैं, उसी प्रकार क्रोध, मान, माया, लोभ, राग, द्वेष, ईर्ष्या और मनमुटाव जैसे दुर्गुणों से बचने के लिए भी रुकना आवश्यक है। हर कष्ट का मूल किसी न किसी कारण में निहित होता है।
यदि कारण की पहचान कर उसका निवारण कर लिया जाए, तो वही समस्या दोबारा जीवन में नहीं आती। लोग कारण मिटाए बिना बार–बार वही कार्य दोहराते हैं और फिर परेशान होते हैं।
आचार्य श्री ने कहा कि ‘पाँच मिनट की साधना मनुष्य को पंच परमेष्ठी समान उच्च पद की ओर अग्रसर कर सकती है, क्योंकि यह साधना व्यक्ति को संयम, विवेक और आत्मबल प्रदान करती है।

