कोटा। आचार्य प्रज्ञासागर महाराज ने बुधवार को अपने प्रवचन में कहा कि समय स्वयं वक्ता है। सुबह, दोपहर या संध्या, हर पल कुछ कहता है। परंतु वास्तविक महत्व इस बात का है कि मनुष्य उस समय का सदुपयोग कैसे करता है। उन्होंने कहा, लोग ‘गुड मॉर्निंग’ और ‘गुड नाइट’ कहते हैं, लेकिन बिना गॉड के कुछ भी गुड नहीं हो सकता।
गुरुदेव ने बताया कि जिसने अपने मन में भगवान को बसा रखा है, उसके भीतर ही परमात्मा का वास होता है। ऐसे व्यक्ति को देवता भी नमन करते हैं। मेरे भीतर जो परमात्मा वास करते हैं, नमस्कार उसी को होता है।
गुरूदेव ने मंदिर की देहरी का उल्लेख करते हुए कहा कि यह केवल प्रवेश द्वार नहीं, बल्कि देवता के चरण हैं, जिन्हें श्रद्धा से प्रणाम करना चाहिए। देवालय की मर्यादाओं का पालन करना ही सच्चे पूजन का अंग है।
आचार्य प्रज्ञासागर ने कहा कि धार्मिक क्रियाओं का निर्वाह पूर्ण जानकारी और नियमों के साथ होना चाहिए। केवल आहार दान ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि धर्म की शिक्षा, बोध और साधना भी आवश्यक है। उन्होंने कहा, “भगवान जिनेन्द्र की सेवा, पूजा और गुरुजनों का सत्संग, ये सब साधक को शिष्य बनाते हैं और उसे ज्ञान की ओर अग्रसर करते हैं।
उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि जैसे प्यास लगने पर पानी पीने का स्वाद आता है और भूख लगने पर भोजन का महत्व समझ आता है, वैसे ही धर्म की साधना तभी सार्थक होती है जब उसे गहराई से अनुभव किया जाए।

