कोटा। विज्ञान नगर स्थित दिगंबर जैन मंदिर में चल रहे चातुर्मास के दौरान रविवार को प्रवचन के दौरान गणिनी प्रमुख आर्यिका विभाश्री माताजी ने तत्वार्थ सूत्र कक्षा में श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कहा कि केवल सांसारिक सुख-सुविधाओं में डूबना ही जीवन का उद्देश्य नहीं होना चाहिए।
विनम्रता और संयम ही वास्तविक साधना है, जो आत्मकल्याण और समाजकल्याण का मार्ग प्रशस्त करती है। माताजी ने कहा कि धन का सदुपयोग तभी है जब उसे समाज और धर्म के कार्यों में लगाया जाए। उन्होंने अनुयायियों को अपनी आय का 10% दान करने की प्रेरणा दी और समझाया कि 10% दान पुण्य दान, 17% मध्यम दान और 25% उत्कृष्ट दान कहलाता है।
तत्वार्थ सूत्र को परिभाषित करते हुए माताजी ने आत्मा के तीन अनन्त गुणों, शक्ति, अनन्तलोक और अनन्तपर्याय पर प्रकाश डाला और बताया कि प्रत्येक आत्मा में असीम संभावनाएँ निहित हैं। साधना का मार्ग इन्हीं गुणों के विकास से प्रशस्त होता है।

