दिन, महीने, साल गुजरते जाएंगे.. हम नीट के सपने में जीते-जीते, उसी में कहीं खो जाएंगे..”

0
45

वरिष्ठ नेत्र चिकित्सक सुरेश पाण्डेय

कोटा। दिन, महीने, साल गुजरते जाएंगे… यह सिर्फ अवतार फिल्म का गीत नहीं, बल्कि 4 मई 2025 को नीट परीक्षा देकर लौटे लाखों विद्यार्थियों की मौन व्यथा है। हर साल भारत में 23–24 लाख विद्यार्थी नीट की दौड़ में शामिल होते हैं, लेकिन सरकारी मेडिकल सीटें महज 1 लाख। हर सीट के लिए 24 सपना, 24 संघर्ष, 24 कहानियां। नीट अब परीक्षा नहीं, एक युद्ध बन चुका है, जहाँ हर सवाल एक तलवार है और हर गलती एक घाव।

इस लड़ाई में विद्यार्थी अकेला नहीं होता, मां की नींद, पिता की जमा-पूंजी, भाई-बहन की खुशियां सब दांव पर लग जाते हैं। कक्षा 9वीं-11वीं से शुरू हुई तैयारी कई बार 3-4 साल या उससे अधिक समय तक खिंचती है। त्यौहार, दोस्त, मस्ती, सब नीट की तैयारी के तप में भस्म हो जाते हैं।

वर्ष 2025 की नीट परीक्षा के बाद जब बच्चों की आँखों में आँसू दिखे, तो वह सिर्फ कठिन फिजिक्स या केमिस्ट्री पेपर की वजह से नहीं थे, बल्कि उसमें झलक रही थी वर्षों की तपस्या, परिवार की उम्मीदें और भविष्य का डर। पिछले कुछ वर्षों में कुछ दिल दहला देने वाली खबरें: “नीट स्टूडेंट ने ……. की…”—ये सिर्फ हेडलाइन नहीं, एक टूटती हुई पीढ़ी की चीख है।

लेकिन क्या संघर्ष मेडिकल कॉलेज में दाख़िला मिलने के बाद खत्म होता है? बिल्कुल नहीं! फिर शुरू होती है MBBS की कठिन पढ़ाई, PG की तैयारी, सुपर-स्पेशलिटी का सफर। एक स्पेशलिस्ट या सुपर स्पेशलिस्ट डॉक्टर जब अपने करियर की शुरुआत करता है, तब वह अक्सर 32–35 वर्ष का हो चुका होता है। मानसिक रूप से थका हुआ, लेकिन उम्मीदों से भरा।

इस लेख का उद्देश्य किसी को दोष देना नहीं, बल्कि आत्म-अवलोकन की पुकार है। क्या अभिभावकों ने कभी अपने बच्चों से पूछा, “तुम्हारा दिल क्या चाहता है?” क्या हम डॉक्टर, इंजीनियर या IAS जैसे लेबल्स के पीछे उनके सपनों को कुचल रहे हैं?

हर बच्चा नीट की जंग नहीं लड़ सकता और न ही उसे जबरदस्ती इस राह पर धकेला जाना चाहिए। डॉक्टर वही बने, जो सचमुच इस कठिन मेडिकल शिक्षा की इस चुनौतीपूर्ण यात्रा के लिए तैयार हो, जिसके भीतर इस लंबी यात्रा को पूरा कर पाने का जुनून हो।

अभिभावकों से विनम्र आग्रह: बच्चों की आवाज़ सुनिए, पैशन समझिए और उनकी उड़ान में सहयात्री बनिए, चाहे वह लेखक बनना चाहें, वैज्ञानिक, उद्यमी या कलाकार। हर बच्चा कुछ न कुछ खास विशेषताओं को लेकर आया है, बस ज़रूरत है उसे पहचानने और स्वीकार करने की।

अभिभावक जब अपने बच्चों को उनके पैशन को पूरा करने में सहायक होंगे और तब एक दिन सभी बच्चे गर्व से गुनगुनाएंगे, “दिन, महीने, साल गुजरते जाएंगे… हम अपने सपनों को जीकर, उड़ान भरते जाएंगे… देखेंगे, देख लेना…।”