नई दिल्ली। भारतीय रुपया रसातल में जा रहा है। US डॉलर के हिसाब से साइकोलॉजिकली जरूरी 90 के निशान को पार कर गया और अब तक के सबसे निचले स्तर पर आ गया।
ट्रेड और पोर्टफोलियो फ्लो में कमजोरी और भारत-US ट्रेड डील पर क्लैरिटी को लेकर चिंताओं की वजह से करेंसी पर दबाव बना रहा। रुपया, US डॉलर के हिसाब से 90.13 के निचले स्तर पर आ गया, जो मंगलवार को इसके पिछले सबसे निचले स्तर 89.9475 से भी ज़्यादा नीचे है।
डॉलर दुनिया में सबसे बड़ी करेंसी है, अधिक लेनदेन इसमें ही होता है। डॉलर के गिरने से फौरी तौर पर हमें जो नुकसान है, वो है महंगाई बढ़ने का। हम जो जो सामान विदेश से मंगवाते है वो और महंगी होंगी जैसे पेट्रोल, फर्टिलाइजर, सोना, इलेक्ट्रॉनिक सामान, मशीन कल पुर्जे। खाद्य तेल और दलहन का बड़ी मात्रा में भारत आयात करता है।
डॉलर महंगा होने से तेल और दाल के लिए अधिक खर्च करने पड़ेंगे जिसका असर इनकी कीमतों पर होगा। ऐसे में इनके महंगा होने से आपके किचन का बजट बिगड़ सकता है। इसके अलावा विदेश में पढ़ाई, यात्रा, दलहन, खाद्य तेल, कच्चा तेल, कंप्यूटर, लैपटॉप, सोना, दवा, रसायन, उर्वरक और भारी मशीन जिसका आयात किया जाता है वह महंगे हो सकते हैं।
नीति आयोग के पूर्व वाइस चेयरमैन राजीव कुमार ने मंगलवार को कहा कि प्रमुख वैश्विक मुद्राओं के मुकाबले रुपये की विनिमय दर में गिरावट अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा है।
उन्होंने कहा कि इससे भारत से श्रम-गहन निर्यात को प्रोत्साहन मिलता है, विदेशी मुद्रा आय बढ़ती है और रोजगार के अवसर तैयार होते हैं। प्रख्यात अर्थशास्त्री ने कहा कि अब समय आ गया है कि तथाकथित मजबूत रुपया को आर्थिक ताकत का प्रतीक मानने की सोच को त्याग दिया जाए।
उन्होंने एक्स पर लिखा, इस गिरावट को लेकर चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है। रुपया मंगलवार को कारोबार के दौरान 90 प्रति डॉलर तक पहुंच गया और अंत में 43 पैसे टूटकर सबसे निचले स्तर 89.96 पर बंद हुआ।

