नई दिल्ली। रूस के आर्कटिक एलएनजी-2 संयंत्र से निकली तरलीकृत प्राकृतिक गैस (LNG) की खेप गुरुवार को पहली बार चीन के बंदरगाह पर पहुंची। अमेरिकी प्रतिबंधों के बावजूद यह खेप चीन के बेहाई एलएनजी टर्मिनल पर पहुंची है। इस कदम को अमेरिकी प्रतिबंध के खिलाफ रूस और चीन का नया मोर्चा माना जा रहा है।
गौरतलब है कि आर्कटिक एलएनजी-2 संयंत्र, जिस पर पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के कार्यकाल में प्रतिबंध लगाए थे, रूस की ऊर्जा रणनीति का अहम हिस्सा है। रूस का लक्ष्य 2030 तक अपनी एलएनजी निर्यात क्षमता को तीन गुना करना है ताकि यूरोप से घटी पाइपलाइन बिक्री की भरपाई नए एशियाई बाजारों से की जा सके।
हालांकि, यह पहला अवसर है, जब किसी प्रतिबंधित रूसी जहाज ने सीधे किसी चीनी आयात टर्मिनल पर ईंधन उतारने की कोशिश की है। इससे पहले खरीदार अमेरिकी कार्रवाई के डर से दूरी बनाए हुए थे।
इस खेप का आगमन ऐसे समय हुआ है, जब रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन रविवार से बीजिंग दौरे पर आने वाले हैं। गौरतलब है कि आर्कटिक एलएनजी-2 संयंत्र ने पिछले साल आठ खेप तैयार की थीं, लेकिन खरीदार न मिलने और बर्फ जमने के कारण उसे बंद करना पड़ा था। इस साल पांच जहाज पहले ही वहां से ईंधन लेकर एशिया की ओर रवाना हो चुके हैं।
इस मामले के विशेषज्ञों का कहना है कि एलएनजी का यह सौदा चीन की जरूरत से ज्यादा अमेरिका के रवैये की परीक्षा है। चीन में घरेलू उत्पादन और पाइपलाइन से आपूर्ति पहले से मजबूत है, इसलिए यह खरीदारी वास्तविक मांग से प्रेरित नहीं बल्कि कूटनीतिक संकेत के तौर पर देखी जानी चाहिए।
अमेरिका फिलहाल रूस पर यूक्रेन युद्ध रोकने के लिए दबाव बढ़ा रहा है और भारत पर रूसी तेल खरीद को लेकर सख्ती भी दिखाई है। लेकिन अब तक रूसी एलएनजी खरीदारों पर अतिरिक्त प्रतिबंध नहीं लगाए गए हैं। विश्लेषकों का मानना है कि अब ट्रंप प्रशासन के अगले कदम पर निगाहें रहेंगी।
भारत को महज 2.5 अरब डॉलर का लाभ
रूस से रियायती दर पर कच्चा तेल आयात करने से भारत को होने वाला वार्षिक शुद्ध लाभ महज 2.5 अरब डॉलर है, जो पहले जताए गए 10 से 25 अरब डॉलर के अनुमान से बहुत कम है। एक शोध रिपोर्ट में यह आकलन पेश किया गया है।
ब्रोकरेज कंपनी सीएलएसए की गुरुवार को जारी रिपोर्ट के मुताबिक, रूसी कच्चे तेल के आयात से भारत को होने वाला लाभ मीडिया में बढ़ा-चढ़ाकर बताया गया है। हमारे अनुमान के मुताबिक, यह लाभ भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का सिर्फ 0.06 प्रतिशत यानी करीब 2.5 अरब डॉलर है।

