नई दिल्ली। पिछले सप्ताह एक उच्चस्तरीय अमरीकी बाजार प्रतिनिधिमंडल भारत के दौरे पर आया था और व्यापार वार्ता के दौरान द्विपक्षीय व्यापार समझौते (बीटीए) के एक भाग के तहत भारत पर अमरीकी जीएम मक्का एवं सोयाबीन के आयात की अनुमति देने के लिए दबाव बढ़ाने का प्रयास भी किया था लेकिन समझा जाता है कि भारतीय पक्ष इसके लिए तैयार नहीं था।
अमरीका को पता है कि भारत में जीएम खाद्य फसलों के उत्पादन उपयोग, आयात एवं कारोबार पर प्रतिबंध लगा हुआ है लेकिन फिर भी वह अपनी शर्त वापस नहीं ले रहा है और इसलिए द्विपक्षीय व्यापार संधि पर हस्ताक्षर नहीं हो रहे हैं। दरअसल अमरीका के कृषि क्षेत्र में गंभीर संकट उत्पन्न हो गया है।
वहां मक्का एवं सोयाबीन का विशाल उत्पादन हुआ है मगर निर्यात प्रदर्शन संतोषजनक नहीं रहने से किसानों के समक्ष वित्तीय अनिश्चितता पैदा हो गई है।अमरीकी गोदाम तो मक्का एवं सोयाबीन के स्टॉक से भरे पड़े हैं मगर इसके खरीदारों का अभाव लगा हुआ है इसलिए वह इसकी खरीद के लिए भारत पर जबरदस्त दबाव डाल रहा है।
जानकारों के अनुसार चीन के साथ व्यापारिक विवाद होने, वैश्विक बाजार में अवरोध रहने तथा ब्राजील जैसे निर्यातक देशों के साथ प्रतिस्पर्धा बढ़ने के कारण अमरीका के किसानों को अपने उत्पादों का लाभप्रद मूल्य हासिल करने के लिए कठिन संघर्ष करना पड़ रहा है।
ट्रम्प प्रशासन का मानना है कि यदि भारत का विशाल बाजार हाथ लग गया तो चीन का बेहतर विकल्प मिल जाएगा और किसानों को अच्छी आमदनी भी प्राप्त होने लगेगी। अमरीकी वार्ताकार भारत में सोयाबीन एवं मक्का के साथ-साथ अन्य कृषि उत्पादों के निर्यात के लिए भी जोरदार लांचिंग कर रहे हैं।
दूसरी ओर भारत अमरीका को अनेक बार सूचित कर चुका है कि यद्यपि वह इसका सबसे बड़ा व्यापारिक साझीदार है लेकिन फिर भी अमरीकी मक्का एवं सोयाबीन का आयात करने की स्थिति में नहीं है। भारत में जीएम फसलों का आयात प्रतिबंधित हैं और इसे हटाना आसान नहीं है।
अमरीका से गैर जीएम मक्का एवं सोयाबीन मंगाना भी मुश्किल है। भारत में इसकी जरूरत कम है और अमरीका के कुल उत्पादन में भी गैर जीएम फसलों की हिस्सेदारी बहुत कम रहती है। भारत के लिए यह लाल रेखा (रेड लाइन) बनी रहेगी क्योंकि भारत केवल गैर जीएम कृषि उत्पादों का ही आयात कर सकता है।

