कोटा। जातिगत आरक्षण के विरोध में सक्रिय रूप से कार्यरत समता आंदोलन समिति ने रविवार को अपना 18वां स्थापना दिवस कोटा के हनुमान वाटिका, गोदावरी धाम में बड़े धूमधाम से मनाया। कार्यक्रम की शुरुआत मां सरस्वती की प्रतिमा पर दीप प्रज्वलन के साथ हुई, जिसमें समिति के वरिष्ठ पदाधिकारीगण मंचासीन रहे।
राष्ट्रीय अध्यक्ष पाराशर नारायण शर्मा मुख्य अतिथि व बाबा शैलेन्द्र भार्गव ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की और राष्ट्रभक्ति गीतों के साथ माहौल को प्रेरणादायी बनाया। विशेष प्रस्तुति में बरखा जोशी और अन्य कलाकारों ने कलाकारों ने देश के वीर सेनानियों के अदम्य साहस को सलाम करते हुए ऑपरेशन सिंदूर को विशेष सलामी दी।
समिति के राष्ट्रीय अध्यक्ष पाराशर नारायण शर्मा ने अपने संबोधन में वर्तमान आरक्षण नीति पर तीखा प्रहार करते हुए कहा कि जातिगत आधार पर मिलने वाले आरक्षण के कारण सामान्य वर्ग के प्रतिभाशाली छात्र शिक्षा और रोजगार के अवसरों से वंचित हो रहे हैं। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि एक सामान्य वर्ग का छात्र, अच्छे अंक लाने के बावजूद, सरकारी मेडिकल कॉलेज में प्रवेश नहीं पा पाता और उसे लाखों रुपये खर्च कर निजी संस्थानों की ओर रुख करना पड़ता है। वहीं दूसरी ओर, कम योग्यता वाले छात्र केवल जाति के आधार पर लाभ उठा रहे हैं। यह स्थिति सामाजिक न्याय नहीं बल्कि योग्यता के साथ अन्याय है।
शर्मा ने कहा कि समिति की वर्षों की वैचारिक लड़ाई का परिणाम है कि आज प्रमोशन में आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा रोक लगाई गई है, जो सामाजिक समता की दिशा में एक बड़ा कदम है। उन्होंने ईडब्ल्यूएस आरक्षण को जातिगत आरक्षण समाप्त करने की दिशा में पहला ठोस कदम बताया और कहा कि 2018 में हुए हिंसक आंदोलनों के बाद जब सामान्य वर्ग ने 6 सितंबर को राष्ट्रव्यापी प्रदर्शन किया, तो उसी के दबाव में सरकार को आर्थिक आधार पर आरक्षण लागू करना पड़ा।
समता आंदोलन समिति ने इस अवसर पर जातिगत जनगणना का खुला समर्थन करते हुए कहा कि इससे क्रीमीलेयर की पहचान संभव होगी और वास्तविक जरूरतमंदों को आरक्षण का लाभ मिलेगा। शर्मा ने कहा कि यदि आंकड़ों के आधार पर उपवर्गों का विश्लेषण किया जाए, तो समाज के सबसे कमजोर तबके तक सहायता पहुंचाई जा सकेगी। उन्होंने यह भी कहा कि मोदी सरकार गरीबों की पक्षधर रही है और इस दिशा में ईमानदार प्रयास कर रही है।
कार्यक्रम में समिति द्वारा सात सूत्रीय मांगों की घोषणा की गई, जिनमें प्रमुख हैं — पदोन्नति में आरक्षण की समाप्ति (जो पहले ही न्यायालय द्वारा निर्देशित है), एससी-एसटी एक्ट की समाप्ति, ईडब्ल्यूएस का विस्तार सभी समुदायों तक, अनुसूचित जातियों में श्रेणीकरण, विधानसभा-लोकसभा में आरक्षण समाप्ति, विधायक-सांसद सलाहकार समिति का गठन, और प्रतियोगी परीक्षाओं में सामान्य वर्ग के लिए न्यूनतम सीटें सुनिश्चित करना।
कोटा संभागीय अध्यक्ष डॉ. अनिल शर्मा ने कहा कि राजनीतिक दलों को टिकट वितरण में भी आरक्षण की व्यवस्था करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि यदि किसी व्यक्ति की प्रतिभा आरक्षण व्यवस्था के कारण दब गई है, तो उसका मुआवजा सरकार को देना चाहिए। उन्होंने सुझाव दिया कि विधायक व सांसदों के लिए सलाहकार समिति का गठन होना चाहिए, जो विकास कार्यों में मार्गदर्शन दे।
संभागीय संयोजक राजेन्द्र गौतम ने सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले का उल्लेख करते हुए कहा कि अब सरकारें आरक्षित पदों से अधिक संख्या में नियुक्तियां नहीं कर सकतीं। यदि पद भर चुके हैं, तो कोई नया उम्मीदवार उस पर तब तक नहीं आ सकता जब तक पद रिक्त न हो। यह व्यवस्था सामान्य वर्ग के लिए राहत की बात है। कमल सिंह, उपाध्यक्ष, ने कहा कि राजनेताओं ने समाज को जाति के नाम पर बांटने का कार्य किया है और अब समय आ गया है कि यह विभाजन समाप्त हो।
प्रदेश महामंत्री सुरेंद्र सिंह राठौड़ ने योग्यता आधारित व्यवस्था की वकालत करते हुए कहा कि सामाजिक न्याय के लिए संघर्ष निरंतर जारी रहेगा। पूर्व सैनिक प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष कर्नल रानू सिंह राजपुरोहित ने कहा कि देश की रक्षा में जाति का नहीं, योग्यता का महत्व होता है। चिकित्सा सेवा प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. श्याम सुंदर सेवदा ने चिकित्सा क्षेत्र में गुणवत्ता और योग्यता की अनिवार्यता पर बल दिया।
एडवोकेट ऋषि राज राठौड़, जयपुर संभाग अध्यक्ष ने आरक्षण व्यवस्था में कानून के स्तर पर गहराई से सुधार की आवश्यकता पर जोर दिया। जिलाध्यक्ष गोपाल गर्ग ने स्वागत भाषण में संगठन की उपलब्धियों पर प्रकाश डाला और 10 वर्षों में संगठन की प्रगति की समीक्षा की मांग रखी।
महामंत्री रास बिहारी पारीक ने मंच संचालन किया, जबकि शिक्षा प्रकोष्ठ की जिलाध्यक्ष इंदु शर्मा, जिला महामंत्री निधि शक्सेना, शिक्षक प्रकोष्ठ अध्यक्ष रमेश शर्मा, शंकरलाल सिंघल, हरिशंकर सैनी, और अन्य अनेक पदाधिकारी कार्यक्रम में उपस्थित रहे।
समता आंदोलन समिति की स्थापना 11 मई 2008 को हुई थी। वर्तमान में यह संगठन देश के 10 राज्यों में सक्रिय है और इसके पास 8000 से अधिक सक्रिय पदाधिकारी और 1.30 लाख सदस्य हैं। यह संगठन जातिगत आरक्षण की समाप्ति और सामाजिक समता की स्थापना के लिए सतत संघर्षरत है।

