कोटा। केवल विचार नहीं, भावना से आत्मकल्याण की दिशा में कदम बढ़ाना ही सच्चा चिंतन है। यह प्रेरक संदेश आचार्य प्रज्ञासागर जी मुनिराज ने नसियां दादाबाडी जैन मंदिर में दिये। उन्होंने कहा कि ‘चिंतन से चिंता नहीं, बल्कि मोक्ष की चिंता होनी चाहिए।
गुरूदेव ने भरत चक्रवर्ती के उदाहरण का उल्लेख करते हुए कहा कि जैसे उन्होंने भोजन करते समय आत्ममंथन किया कि मैं कब मुनियों की तरह आहार करूंगा? वैसे ही हर व्यक्ति को यह विचार अवश्य करना चाहिए कि मैं कब आत्मकल्याण के मार्ग पर अग्रसर होऊँगा।
उन्होंने कहा कि इस जन्म में दीक्षा न भी हो, पर दीक्षा की भावना और इच्छा प्रतिदिन जागृत रहनी चाहिए। जब विचार और भावना एक दिशा में प्रवाहित होते हैं, तभी जीवन में आध्यात्मिक प्रगति संभव है।
इस अवसर पर आचार्य प्रज्ञासागर जी मुनिराज संघ के सान्निध्य में प्रज्ञा अनुपम चातुर्मास का प्रथम मुख्य मंगल कलश मोहनलाल, कैलाश, यतीश खेडावाला परिवार (दादाबाड़ी, कोटा) द्वारा स्थापित किया गया।
पंचपरमेष्ठि मंत्र, नवकार मंत्र और विशेष मंगलाचरण के बीच 48 दीपों व 48 अर्घ्य अर्पित किए गए। गुरू आस्था चैयरमेन यतिश जैन खेडावाला ने बताया कि कलश स्थापना की यह विधि श्रद्धा, मंत्रोच्चारण और पवित्रता के साथ संपन्न हुई, जिससे वातावरण में शुद्धता और आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार हुआ।

