गुरु का हाथ थामे बिना संसार रूपी दलदल से निकलना असंभव: आचार्य प्रज्ञासागर

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रिद्धि-सिद्धि नगर से आचार्यश्री विज्ञान नगर पहुंचे, आज तलवंडी जैन मंदिर होगा विहार

कोटा। आचार्य प्रज्ञासागर महाराज ने सोमवार संध्या वंदन में अपने प्रवचन में कहा कि संसार के मोह और संस्कारों में बंधे अनादि कर्मों को बदलना अत्यंत कठिन कार्य है। उन्होंने कहा कि गांठ लगाना आसान होता है, पर उसे खोलना कठिन। इसी प्रकार कर्म और संसार की गांठें लाख प्रयत्नों के बाद भी नहीं खुलतीं, इन्हें केवल तपस्या और ध्यान की अग्नि से ही भस्म किया जा सकता है।

आचार्य ने कहा कि संसार का स्वभाव ही उलझना है, जितना सुलझाने की कोशिश करो, उतना और उलझता चला जाता है। जैसे दलदल में फंसा व्यक्ति जितना बाहर निकलने का प्रयास करता है, उतना ही गहराई में धँसता चला जाता है। आज मनुष्य की स्थिति भी ऐसी ही हो गई है। वह संसार रूपी दलदल में फंसा है और उससे मुक्त होने के बजाय और गहराई में धंसता जा रहा है।

गुरुदेव ने दलदल में फंसे हाथी का उदाहरण देते हुए कहा “मनुष्य संसार रूपी दलदल में फंसा हाथी है, जो बाहर निकलने के लिए चिंघाड़ता तो है, परंतु अपना सूंड (प्रयास) नहीं बढ़ाता। गुरुदेव प्रतिदिन करुणा से अपना हाथ बढ़ाकर साधकों को इस मिथ्या संसार से बाहर निकालने का प्रयास करते हैं, लेकिन जब तक हम भी अपना हाथ (सहयोग) नहीं बढ़ाते, तब तक मुक्ति संभव नहीं। केवल आशीर्वाद लेने से मुक्ति नहीं मिलती, हाथ में हाथ दो, तभी संसार के दलदल से बाहर आ सकोगे।

इस अवसर पर आचार्य प्रज्ञासागर महाराज ने सोमवार प्रातः 6:30 बजे रिद्धि-सिद्धिनगर स्थित श्री चंद्रप्रभु दिगंबर जैन मंदिर से विहार प्रारंभ किया और विज्ञान नगर दिगंबर जैन मंदिर पहुंचे। विहार में सकल समाज अध्यक्ष प्रकाश बज, मंदिर महामंत्री अनिल ठोरा, विकास अजमेरा, रितेश सेठी सहित अनेक श्रद्धालु सम्मिलित रहे।