नई दिल्ली। देश में पिछले एक साल में सभी खाने के तेलों के दाम तेजी से बढ़े हैं। सरकारी रिकॉर्ड में दिल्ली में एक साल पहले जो सरसों का तेल 130 रुपए किलो था वो इस वक्त 180 रुपए किलो मिल रहा है। वहीं 179 रुपए किलो वाला मूंगफली का तेल 200 को पार कर गया है। खुदरा बाजार में कीमतें इससे कहीं ज्यादा हैं।
खाद्य तेलों का घरेलू उत्पादन उसकी जरूरतें पूरी करने के लिए पर्याप्त नहीं है। भारत अपनी कुल जरूरत का केवल 40% खाद्य तेल का उत्पादन करता है। डिमांड और सप्लाई के गैप को पूरा करने के लिए देश की जरूरत का 60% तेल इम्पोर्ट किया जाता है। इंटरनेशनल मार्केट में खाने के तेल के दाम पिछले एक साल में बढ़े हैं। इसी वजह से देश में इनके दामों में इजाफा हुआ है। ये बातें खुद सरकार ने इसी साल मार्च में लोकसभा में कही हैं। हालांकि, सरकार का दावा है कि इंटरनेशनल मार्केट में हुए इजाफे की तुलना में देश में तेल के दाम में काफी कम इजाफा हुआ है।
देश के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग तरह के तेल खाने में इस्तेमाल होते हैं। कंज्यूमर अफेयर्स डिपार्टमेंट छह तरह के तेल के दामों की मॉनिटरिंग करता है। इनमें मूंगफली का तेल, सरसों का तेल, वनस्पति, सोयाबीन का तेल, सूरजमुखी का तेल और पाम ऑइल शामिल हैं। पिछले एक साल में इन सभी की कीमतों में 20% से 60% तक का इजाफा हुआ है।
तेल की कुल खपत का 56 फीसदी हिस्सा आयात किया जाता है और अंतरराष्ट्रीय बाजार में बीते कुछ महीनों में खाने के तेल की कीमतों में अलग-अलग वजहों के चलते तेजी से बढ़ोतरी हुई है।सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एसईएआई) के कार्यकारी निदेशक बी. वी. मेहता ने एक इंटरव्यू में बताया कि बीते कुछ समय से वनस्पति तेल से जैव ईंधन बनाने पर काफी जोर दिया जा रहा है और ये खाने के तेल की बढ़ती कीमतों की एक बड़ी वजह है।
इसके अलावा अमेरिका व ब्राजील के साथ और भी कई देशों में सोयाबीन तेल से अक्षय ईंधन (Renewable Fuel) बनाने पर भी बल दिया जा रहा है। कोरोना वायरस और लॉकडाउन के बावजूद बीते एक साल में खाने के तेल की वैश्विक मांग में भी बढ़ोतरी हुई है।
इसके अलावा फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गेनाइजेशन के मुताबिक अपेक्षा से कम खेती और अमेरिका के प्रमुख सोया उत्पादक क्षेत्रों में खेती के लिए विपरीत मौसम भी इसके बड़े कारणों में शामिल हैं।

