खरीफ सीजन की तिलहन फसलों का रकबा घटा, सोयाबीन की फसल चौपट

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ये नदी नहीं खेत हैं, अतिवृष्टि से सोयाबीन की फसल गल गई।

नई दिल्ली। इस बार खरीफ सीजन की प्रमुख तिलहन फसल- सोयाबीन के लिए हालात अच्छे नहीं दिख रहे हैं। कमजोर मंडी भाव के कारण इसके बिजाई क्षेत्र में कमी आ गई और फिर प्राकृतिक आपदाओं से फसल को नुकसान भी हो रहा है। इसके बावजूद थोक मंडी भाव सरकारी समर्थन मूल्य से काफी नीचे चल रहा है।

सोयाबीन की वजह से खरीफ कालीन तिलहन फसलों का कुल उत्पादन क्षेत्र भी गत वर्ष के 200.75 लाख हेक्टेयर से 10.62 लाख हेक्टेयर घटकर इस बार 190.13 लाख हेक्टेयर रह गया जो सामान्य औसत क्षेत्रफल 194.63 लाख हेक्टेयर से 4.50 लाख हेक्टेयर कम है।

केन्द्रीय कृषि मंत्रालय के आंकड़ों से पता चलता है कि पिछले साल के मुकाबले चालू खरीफ सीजन के दौरान 3 अक्टूबर 2025 तक सोयाबीन का घरेलू उत्पादन क्षेत्र घटकर 120.45 लाख हेक्टेयर पर अटक गया

गत वर्ष 129.55 लाख हेक्टेयर में इसकी खेती हुई थी। इस तरह सोयाबीन के बिजाई क्षेत्र में 9.10 लाख हेक्टेयर की जोरदार गिरावट दर्ज की गई।

इसका सामान्य औसत क्षेत्रफल 127.19 लाख हेक्टेयर आंका गया था। देश के तीनों शीर्ष उत्पादक प्रांतों- मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र एवं राजस्थान में सोयाबीन का रकबा घटा है और फसल को बाढ़-वर्षा से क्षति भी हुई है।

अन्य खरीफ कालीन तिलहन फसलों में मूंगफली का उत्पादन क्षेत्र गत वर्ष के 49.96 लाख हेक्टेयर से घटकर इस बार 48.36 लाख हेक्टेयर, तिल का बिजाई क्षेत्र 11.07 लाख हेक्टेयर से गिरकर 10.51 लाख हेक्टेयर तथा सूरजमुखी का क्षेत्रफल 73 हजार हेक्टेयर से फिसलकर 71 हजार हेक्टेयर पर आ गया

जबकि नाइजर सीड का रकबा 98 हजार हेक्टेयर से सुधरकर 1.04 लाख हेक्टेयर तथा अरंडी का बिजाई क्षेत्र 8.39 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 8.98 लाख हेक्टेयर पर पहुंच गया। ज्ञात हो कि अरंडी मुख्यतः अखाद्य या औद्योगिक संवर्ग की तिलहन फसल मानी जाती है।

मूंगफली का करबा गुजरात और राजस्थान में बढ़ा है जो इसके दो शीर्ष उत्पादक प्रान्त हैं लेकिन अन्य राज्यों में बिजाई कम हुई है। तिलहन फसलों को भी बाढ़-वर्षा से कहीं-कहीं क्षति हुई है मगर शेष फसल की हालत संतोषजनक बताई जा रही है। गुजरात सरकार ने इस बार राज्य में मूंगफली के शानदार उत्पादन का अनुमान लगाया है। मूंगफली की नई फसल की कटाई-तैयारी मंडियों में आवक की गति वहां तेज होने लगी है।