कोर्ट का आदेश लागू नहीं होने से बढ़ रहे अवमानना के केस : मुख्य न्यायाधीश रमना

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नई दिल्ली। प्रधान न्यायाधीश एनवी रमणा ने न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका की शक्तियों और क्षेत्राधिकार के बंटवारे की संवैधानिक व्यवस्था का जिक्र करते हुए कहा कि कर्तव्यों का निर्वहन करते समय हम सभी को लक्ष्मण रेखा का ध्यान रखना चाहिए। उन्होंने स्पष्ट किया कि न्यायपालिका कभी शासन के रास्ते में आड़े नहीं आएगी, अगर यह कानून के अनुसार हो। शनिवार को मुख्यमंत्रियों और उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीशों के संयुक्त सम्मेलन में सीजेआइ ने अदालत में लगे मुकदमों के ढेर का कारण गिनाया।

सीजेआई ने कहा कि कुछ जिम्मेदार अथारिटीज के अपना काम ठीक से न करने के कारण 66 फीसदी मुकदमे होते हैं। सरकार और सरकारी उपक्रमों की आपसी मुकदमेबाजी पर चिंता जताते हुए प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि सबसे बड़ी मुकदमेबाज सरकार है। कोर्ट के आदेशों को वर्षों तक लागू नहीं किए जाने के कारण अवमानना के मुकदमे बढ़ने से एक नई श्रेणी तैयार होती है।

इससे कोर्ट पर बोझ बढ़ता है। कोर्ट का आदेश होने के बावजूद सरकार का जानबूझकर कदम न उठाना लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं है। प्रधान न्यायाधीश ने सरकार और सरकारी अथारिटीज के ढुलमुल रवैये के कारण बढ़ते मुकदमों के ढेर की ओर ध्यान आकर्षित किया। इससे निपटने के लिए न्यायपालिका का ढांचागत संसाधन और जजों की संख्या बढ़ाने की जरूरत बताई।

जस्टिस रमणा ने कहा कि हम सभी संवैधानिक पदाधिकारी हैं और संवैधानिक व्यवस्था का पालन करते हैं। संविधान में राज्य के तीनों अंगों की शक्तियों के बंटवारे का स्पष्ट प्रविधान है। उनके कामकाज, क्षेत्राधिकार और जिम्मेदारियां स्पष्ट हैं। राज्य के तीनों अंग समन्वय के साथ काम करते हैं, जिन्होंने राष्ट्र की लोकतांत्रिक नींव मजबूत की है।

मुकदमों के कारण

  • जस्टिस रमणा ने न्यायपालिका की चुनौतियों और व्यवस्था को सुदृढ़ करने पर जोर दिया। अदालतों में मुकदमों के ढेर के कुछ कारण गिनाए।
  • उन्होंने कहा कि तहसीलदार जमीन के सर्वे या राशन कार्ड के बारे में किसान की शिकायत पर कार्रवाई करे, तो किसान कोर्ट क्यों जाएगा?
  • अगर नगर निगम और ग्राम पंचायत ठीक ढंग से अपना काम करे, तो फिर नागरिकों को अदालत जाने की जरूरत क्यों पड़ेगी?
  • अगर राजस्व विभाग कानून की प्रक्रिया का पालन करते हुए जमीन अधिग्रहीत करे, तो जमीन विवाद के मुकदमों का बोझ नहीं होगा।

सीजेआई ने कहा कि समझ नहीं आता कि सरकार के अंतर विभागीय झगड़े कोर्ट क्यों आते हैं? लगभग 50 फीसदी मुकदमे सरकार के हैं। अगर पुलिस की जांच निष्पक्ष हो और गैरकानूनी गिरफ्तारी और हिरासत में अत्याचार खत्म हो जाएं, तो कोई पीड़ित कोर्ट नहीं आएगा। लोक अभियोजकों की कमी एक बड़ा मुद्दा है और इसे देखा जाना चाहिए।
कोर्ट उन्हें मना नहीं करेगा

जस्टिस रमणा ने कहा कि नीति निर्धारित करना कोर्ट का काम नहीं है, लेकिन अगर नागरिक अपनी परेशानियां लेकर आते हैं, तो कोर्ट उन्हें मना नहीं कर सकता। उन्होंने कानून की अस्पष्टता को भी एक मुद्दा बताया। कहा कि अगर विधायिका स्पष्ट सोच, दूरदर्शिता और लोगों के कल्याण को ध्यान में रखकर कानून बनाए, तो मुकदमेबाजी की आशंका बहुत कम होगी। विधायिका से अपेक्षा की जाती है कि वह कानून बनाने से पहले लोगों की राय लेगी, विधेयक पर व्यापक चर्चा कराएगी।

पीआइएल का दुरुपयोग
प्रधान न्यायाधीश ने पीआइएल के दुरुपयोग का भी मुद्दा उठाया। कहा कि फर्जी याचिकाएं भी चिंता का विषय हैं। कई बार पीआइएल पर्सनल इंटरेस्ट लिटीगेशन (निजी हित याचिका) होती हैं। इसमें संदेह नहीं कि पीआइएल से जनहित का बहुत काम होता है। लेकिन कई बार इनका दुरुपयोग परियोजनाओं को रोकने और पब्लिक अथारिटी को दबाव में लेने के लिए होता है। आजकल पीआइएल राजनीतिक और कारपोरेट प्रतिद्वंद्विता के लिए भी होता है। इनके दुरुपयोग को देखते हुए अदालतों को बहुत सावधान रहने की जरूरत है।
देश की अदालतों में चार करोड़ 11 लाख मामले लंबित हैं। जज और आबादी के अनुपात में सुधार लाने की जरूरत है।