कोटा में 13 पिच्छियों के चातुर्मास उत्सव में उमड़ी श्रद्धा, दीपोत्सव की तैयारियां

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जीवन की हर परिस्थिति में संतुलन ही साधक का धर्म: विभाश्री माताजी

कोटा। विज्ञान नगर स्थित दिगंबर जैन मंदिर में इन दिनों विभाश्री माताजी एवं आर्यिका विनयश्री माताजी (संघ सहित) के सान्निध्य में चल रहे 13 पिच्छियों के चातुर्मास उत्सव में श्रद्धा, अनुशासन और भक्ति का अद्भुत संगम देखने को मिल रहा है।

जैन मंदिर में पांवपुरी तीर्थ क्षेत्र की भव्य झांकी तैयार की जा रही है, जिसका लोकार्पण 19 अक्टूबर को किया जाएगा। उसी दिन सायंकाल 108 दीपों से महाआरती संपन्न होगी। इसके लिए दीपक सजाओ प्रतियोगिता का आयोजन भी रखा गया है। 20 अक्टूबर को सहस्त्रनाम विधान एवं 21 अक्टूबर को भगवान महावीर जन्म कल्याणक के अवसर पर निर्माण लड्डू चढ़ाने का कार्यक्रम होगा।

प्रवचन के दौरान आर्यिका विभाश्री माताजी ने कहा कि साधक को जीवन की हर परिस्थिति में जीना आना चाहिए। कभी जीवन में समृद्धि आती है, तो कभी कठिनाइयाँ, परंतु दोनों स्थितियों में संतुलित रहना ही साधक का वास्तविक धर्म है।

माताजी ने कहा कि गृहस्थ व्यक्ति दिनभर अपने पारिवारिक और व्यावसायिक कार्यों में अनजाने में पाँच प्रकार के पाप कर बैठता है। इन पापों के प्रक्षालन हेतु उसे प्रतिदिन पाँच णमोकार मंत्र की माला करनी चाहिए। यदि व्यक्ति यह नियम नियमितता से निभाता है, तो उसके पाप क्षीण होकर पुण्य में परिवर्तित होते हैं। जिस प्रकार मनुष्य धन अर्जन के लिए पुरुषार्थ करता है, उसी प्रकार पुण्य अर्जन के लिए भी सतत प्रयत्नशील रहना चाहिए।

माताजी ने आचार्य भगवान पूज्यपाद स्वामी की ‘तत्त्वार्थ सूत्र’ टीका ‘सर्वार्थ सिद्धि’ का उल्लेख करते हुए कहा कि प्रशम, संवेग, आस्तिक्य और अनु‍कम्पा- ये चार गुण सम्यक दृष्टि की पहचान हैं।

उन्होंने बताया कि करुणा और अनुग्रह का भाव ही अनु‍कम्पा का स्वरूप है, जो मानवता को उच्चतम स्तर तक ले जाता है। न्याय और नीति पर आधारित जीवन ही सच्ची ईमानदारी का प्रतीक है। जो व्यक्ति दूसरों के प्रति दया, सहानुभूति और परोपकार का भाव रखता है, वही धर्म का सच्चा साधक है। जिस व्यक्ति के मन में अपने माता-पिता, भाई-बहन के प्रति करुणा नहीं है, उसके भीतर समस्त संसार के प्रति यह भावना उत्पन्न नहीं हो सकती।