कोटा। राष्ट्रीय मेला दशहरा में शुक्रवार को विजयश्री रंगमंच राजस्थानी लोक परंपरा का गवाह बना। राजस्थान पर्यटन विभाग के सहयोग से हुई सांस्कृतिक संध्या में कलाकारों ने राजस्थानी लोक प्रस्तुतियों से दर्शकों का मन मोह लिया।
कार्यक्रम का शुभारंभ जिला प्रमुख मुकेश मेघवाल, पूर्व भाजपा शहर जिला अध्यक्ष हेमंत विजय, रेडक्रॉस सोसाइटी के महासचिव जगदीश जिंदल, भाजपा एसटी मोर्चा के अध्यक्ष अशोक मीणा, मेला समिति अध्यक्ष विवेक राजवंशी, मेला प्रभारी अशोक मीणा ने दीप प्रज्ज्वलन के साथ किया।
सर्वप्रथम संजय कठपुतली की ओर से गणेश वंदना की गई। संजय कठपुतली मनोरंजन केंद्र की ओर से कठपुतली नृत्य की आकर्षक प्रस्तुतियां दी गई। जिन्हें देखकर हर कोई दांतो तले उंगली दबाने लगा।
बरखा जोशी और उनकी शिष्याओं की ओर से प्रस्तुत कथक नृत्य की भावपूर्ण प्रस्तुतियों ने दर्शकों का मनमोहन लिया। उन्होंने पग संचालन, तोड़े, टुकड़े और परन का अद्भुद संयोजन दिखाया।छबड़ा के कलाकार शिवनारायण गुजरावत दल ने चकरी नृत्य किया। महिला कलाकारों ने सिर पर पीतल की चरी में जलते दीपक रखकर नृत्य की प्रस्तुति दी।
गौतम परमार बाड़मेर के दल ने धरती धोरां री.. गीत पर तलवार अग्नि नृत्य किया। उन्होंने जलती हुई तलवार को सिर और मुंह में रखकर नृत्य किया तो हर कोई वह वाह कह उठा। लीलादेवी कालबेलिया और उनके समूह ने “काल्यो कूद पड्यो मेला मं…” पर कालबेलिया नृत्य की प्रस्तुति दी। चक्रासन करते हुए मुंह से नोट उठाया तो तालियां गूंज उठी।
जस्सू खां ने स्वागत गीत “केसरिया बालम पधारो म्हारे देश…” के साथ सुरों का ऐसा रंग बिखेरा कि हर कोई निहाल हो गया। इसके बाद उन्होंने “घूमर” तो कभी “बन्ना जीमो तो हलुआ है बादाम रो सा” की तान छेड़ सभी को झूमने के लिए मजबूर कर दिया। उन्होंने “आफरीन आफरीन..” “हुस्न ए जाना की तारीफ मुमकिन नहीं..” सुनाया तो विजयश्री रंगमंच तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा।
पाली की गंगादेवी ने तेरहताली नृत्य प्रस्तुत किया। उन्होंने भगवान रामदेव के भजन ” म्हारो हेलो सुणो जी रामापीर.. वारी जाऊं रे, बलिहारी जाऊं रे.. पर नृत्य की शानदार प्रस्तुति दी। कोटा के कुणाल गंधर्व ने बिन्दौरी नृत्य की प्रस्तुति से समां बांध दिया। उनके द्वारा पणिहारी गीत “कुण जी खुदाया कुआं बावड़ी रे..” पर वर और वधु पक्ष के द्वारा एक एक कर वैवाहिक परंपराओं को साकार किया गया।
जस्सू खां खड़ताल की जादूगरी दिखाते हुए पारंपरिक वाद्य यंत्रों के साथ जुगलबंदी से कार्यक्रम को नई ऊँचाइयाँ दी। युसूफ मेवाती अलवर ने ढोलक, ढोल, मोरचंग, कमायचा, सिंधी सारंगी, अलगोजा, भपंग, झांझ, हरमोनियम शानदार जुगलबंदी कर डेजर्ट सिम्फनी की जबरदस्त प्रस्तुति दी।
अजमेर की कलाकार करुणा ने चरी नृत्य और घूमर नृत्य की प्रस्तुति दी। उन्होंने चिरमी रा ढाला चार.. वारी जाऊं चिरमी ने.. पर राजस्थानी लोक संस्कृति के रंग बिखेरे। बनेसिंह ने रिवई भवई नृत्य किया। उन्होंने म्हारी हथेलियां रे बीच खाड़ा पड़ गया ग्या.. गीत पर हैरत अंगेज प्रदर्शन करते हुए नृत्य किया।
सबसे अंत में हुई डीग के अशोक शर्मा ने कृष्ण रास और होली मयूर नृत्य ने दर्शकों को झुमने पर मजबूर कर दिया। श्रीकृष्ण की लीलाओं के इस अदभुत प्रदर्शन ने उनके रास के विविध स्वरूपों मयूर महारास, डांडिया महारास और होली महारास मनोहारी रंग में रंग दिया।
होली महारास में कृष्ण ने राधा और उनकी सखियों के साथ फूलों की होली खेल प्रेम की अद्भुत छटा बिखेर दी। कृष्ण की 16 कलाओं की झलक मयूर महाराज में देखने को मिली। वहीं डांडिया महारास दर्शकों को उनके अद्वितीय आध्यात्म और शक्ति की ओर ले गया।

