कैग ने बताई डीबीटी प्रणाली में खामियां, बिना जांच खातों में जा रहे करोड़ों रुपए

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नागपुर। Comptroller and Auditor General of India: भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) के. संजय मूर्ति ने डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (डीबीटी) सिस्टम में गंभीर खामियों को उजागर किया है। उन्होंने बताया कि सरकारी विभागों के बीच तालमेल की कमी और डेटा एकीकरण के कमजोर होने के कारण हजारों करोड़ रुपये बिना किसी जरूरी जांच के लाभार्थियों के खातों में जा रहे हैं।

सीएजी ने यह बात नागपुर स्थित नेशनल एकेडमी ऑफ डायरेक्ट टैक्सेज में भारतीय राजस्व सेवा के अधिकारियों के पहले बैच को संबोधित करते हुए कही।

सीएजी मूर्ति ने कहा कि डुप्लीकेसी यानी एक ही व्यक्ति को बार-बार लाभ मिलने और डेटा की क्रॉस-वेरिफिकेशन यानी अलग-अलग डेटाबेस से मिलान करने के स्तर पर बड़ी कमियां हैं। उन्होंने चिंता जताई कि सरकारी विभाग इतने अलग-थलग होकर काम कर रहे हैं कि एक ही विभाग के अलग-अलग संयुक्त सचिव एक ही डेटाबेस का इस्तेमाल नहीं करते।

डेटाबेस वेरिफिकेशन में कमी
उन्होंने कहा कि हम जनधन, आधार और मोबाइल फोन लिंक्ड डेटाबेस कनेक्टिविटी की बात करते हैं। फिर भी, जिस स्तर पर डेटाबेस तैनात किए गए हैं, खासकर हम जो रिपोर्ट तैयार करते हैं, उसमें एक बड़ा अंतर है। हम कहते हैं कि ये सभी आधार-आधारित लाभार्थी हैं, लेकिन DBT मिशन द्वारा अनिवार्य डी-डुप्लीकेशन या क्रॉस-डेटाबेस वेरिफिकेशन की मात्रा गायब है। फिर भी, वित्तीय समावेशन योजनाओं में बुनियादी जांच के बिना हजारों करोड़ रुपये सिस्टम में जा रहे हैं।

हर जगह एक जैसा पैमाना नहीं अपनाया जा सकता
CAG ने यह भी बताया कि भारत एक विशाल देश है और हर जगह एक जैसा पैमाना नहीं अपनाया जा सकता। उन्होंने कहा कि दक्षिणी राज्यों ने तकनीक के इस्तेमाल में अच्छी शुरुआत की है, जिससे ऑडिट के लिए अधिक परिपक्व डेटा उपलब्ध है। यह जांचना महत्वपूर्ण है कि सरकारी योजनाओं को लागू करते समय बुनियादी जांच और संतुलन का पालन किया जा रहा है या नहीं।

उन्होंने जोर दिया कि भले ही यह लापरवाही जानबूझकर न हो, लेकिन कार्यान्वयन में सटीकता का एक स्तर होना चाहिए। IRS प्रोबेशनर्स को संबोधित करते हुए कि CAG मूर्ति ने कहा कि उनके विभाग के अधिकारी टैक्स अधिकारियों के साथ अपने अनुभव साझा करेंगे ताकि आगे की जांच के रास्ते खुल सकें। उन्होंने बताया कि सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय, वस्तु एवं सेवा कर (GST) या राज्य के एकीकृत वित्तीय प्रबंधन प्रणाली जैसी एजेंसियों से प्राप्त डेटाबेस अनुसंधान के लिए जानकारी का खजाना हो सकते हैं। उन्होंने कहा कि सिस्टम को धोखा देने के तरीकों की जांच की जानी चाहिए।