कल कभी आता नहीं, आज को अंतिम दिन मान कार्य करेंगे तो सर्वश्रेष्ठ होगा: प्रज्ञासागर

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कोटा। जैनाचार्य प्रज्ञासागर मुनिराज का 37वां चातुर्मास महावीर नगर प्रथम स्थित प्रज्ञालोक में जारी है। आचार्य प्रज्ञा सागर ने बुधवार को अपने प्रवचन में कहा कि दिगंबर मुनि जब किसी गृहस्थ के द्वार पर आहार हेतु आते हैं, तो यह उस गृहस्थ के विशेष पुण्य का परिणाम होता है।

उन्होंने कहा कि छह खंडों के अधिपति चक्रवर्ती सम्राट भरत भी जब मुनियों के स्वागत हेतु खड़े होते थे तो ‘हे मुनि नमोस्तु, हे मुनि नमोस्तु’ कहकर विनम्रता से आहार के लिए आमंत्रित करते थे। यह केवल साधु का आगमन नहीं, बल्कि एक दिव्य अवसर होता है, जब साधु के पदार्पण से घर की चार दीवारी भी पवित्र हो जाती है।

उन्होंने स्पष्ट किया कि भोजन तो प्रतिदिन बनता है, किंतु जब पुण्य विशेष रूप से जाग्रत होता है, तभी उसमें आत्मिक पवित्रता आती है और तभी मुनि आहार के लिए उस गृह में प्रवेश करते हैं। साधु के आगमन से न केवल भोजन का चौका शुद्ध होता है, बल्कि मन, वचन और कर्म भी विशुद्ध हो जाते हैं।

मुनिश्री ने जीवन की क्षणभंगुरता की ओर संकेत करते हुए कहा कि हर व्यक्ति को ऐसा प्रतिक्रमण, स्वाध्याय और तप करना चाहिए मानो यह जीवन का अंतिम दिन हो। उन्होंने कहा, जो व्यक्ति सोचता है कि कल फिर मौका मिलेगा, वह स्वयं को धोखा देता है, क्योंकि ‘कल’ कभी आता नहीं। जब भी आता है, वह ‘काल’ बनकर आता है।”यदि आप आज को अंतिम मानकर कार्य करेंगे तो वह सर्वश्रेष्ठ होगा।